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________________ २४ पाणिनीय अष्टाध्यायो में स्मृत श्राचार्य १८५. शौनक ने ऋक्प्रातिशाख्य में शाकल्य तथा उस के व्याकरण के मत उदधृत किये हैं ।' शौनक ने महाराज अधिसीम कृष्ण के राज्यकाल में नैमिषारण्य में किये गये किसी द्वादशाह सत्र में ऋक् प्रातिशाख्य का प्रवचन किया था । अतः शौनक का काल विक्रम से लगभग २६०० वर्ष पूर्व निश्चित है । तदानुसार शाकल्य उससे भो प्राचीन ५ व्यक्ति है । महाभारत अनुशासनपर्व १४ में सूत्रकार शाकल्य का उल्लेख है, वह वैयाकरण शाकल्य प्रतीत होता है । शाकल्य ने शाकल चरण तथा उसके पदपाठ का प्रवचन किया था । महिदास ऐतरेय ने ऐतरेय ब्राह्मण का प्रवचन किया है । प्रष्टाघ्यायी ४ | ३ | १०५ के 'पुराणप्रोक्तेषु ब्राह्मणकल्पेषु' सूत्र की १० काशिकादिवृत्तियों के अनुसार ऐतरेय ब्राह्मण पाणिनि की दृष्टि में पुराणप्रोक्त है। इस की पुष्टि छान्दोग्य उपनिषद् और जैमिनीय उपनिषद् ब्राह्मण से भी होती है । छान्दोग्य ३५ ६ ७ में लिखा है'एतद्ध स्म वे तद्विद्वानाह महिदास ऐतरेय: स ह षोडशवर्षशत 1 मजीवत् ” । जैमिनीय उपनिषद् ब्राह्मण ४ । २ । ११ में लिखा है - ' एतद्ध १५ तद्विद्वान् ब्राह्मण उचाव महिदास ऐतरेय: स ह षोडशवर्षशतं जिजीव' । इन उद्धरणों में 'आह' 'उवाच' और 'जिजीव' परोक्षभूत की क्रियाओं का उल्लेख है । इन से प्रतीत होता है कि महिदास ऐतरेय छान्दोग्य उपनिषद् और जैमिनीय उपनिषद् ब्राह्मण के प्रवचन से बहुत पूर्व हो चुका था । छान्दोग्य उपनिषद् और जैमिनीय उपनिषद् २० का प्रवचन विक्रम से लगभग ३१०० वर्ष पूर्व प्रवश्य हुआ था । अतः महिंदास ऐतरेय विक्रम से ३५०० वर्ष पूर्व अवश्य हुप्रा होगा । ऐतरेय ब्राह्मण १४।५ में एक पाठ है - यदस्य पूर्वमपरं तदस्य यद्वस्यापरं तद्वस्य पूर्वम् । श्रहेरिव सर्पणं शाकलस्य न विजानन्ति । इस वचन के आधार पर शाकल्य का काल महिदास ऐतरेय से १. पूर्व पृष्ठ १८३, टि० २ । २. वैदिक वाङ्मय का इतिहास भाग १, पृष्ठ ३७३ ( द्वि० सं०) । ३. गङ्गानाथ झा ने षोडशशतम् का अर्थ १६०० वर्ष किया है। यह २५ अशुद्ध है । इस का कारण संस्कृतभाषा के वाग्व्यवहार को न जानना है । शुद्ध ३० अर्थ ११६ वर्ष है ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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