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१८४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
अनेक शाकल्य-संस्कृत वाङमय में शाकल्य,' स्थविर शाकल्य' विदग्ध शाकल्य' और वेदमित्र (देवमित्र) शाकल्य ये चार नाम उपलब्ध होते हैं। पाणिनीय सूत्रपाठ में स्मृत शाकल्य और ऋग्वेद
का पदकार वेदमित्र शाकल्य निश्चय ही एक व्यक्ति है, क्योंकि ५ ऋक्पदपाठ में व्यवहत कई नियम पाणिनि ने शाकल्य के नाम से
उद्धृत किये हैं । ऋक्प्रातिशाख्य पटल २ सूत्र ८१,८२ की उव्वट व्याख्या के अनुसार शाकल्य और स्थविर शाकल्य भिन्न भिन्न व्यक्ति प्रतीत होते हैं। जिस विदग्ध शाकल्य के साथ याज्ञवल्क्य का जनकसभा में शास्त्रार्थ हुअा था वह भो भिन्न व्यक्ति है । वायु (म० ६०। ३२) आदि पुराणों में वेदमित्र (देवमित्र) शाकल्य को याज्ञवल्क्य का प्रतिद्वन्द्व कहा गया है। कई शाकल्य को ऐतरेय महोहास से भा पूर्ववर्ती मानते हैं । यह ठीक नहीं है (द्र० पृष्ठ १८३) ।
शाकल्य और शौनकों का संबन्ध पाणिनि ने कार्तकौजपादि गण (६।२।३७) में शाकलशुनकाः पद १५ पढ़ा है। काशिकाकार के मतानुसार यहां शाकल्य के शिष्यों और
शुनक के पुत्रों का द्वन्द्व समास है । इस उदाहरण से विदित होता है कि शाकल्य शिष्यों और शुनक पुत्रों (शोनक) का कोई घनिष्ठ सम्बन्ध था। सम्भव है इसी कारण शोनक ने शाकल चरण का
प्रातिशाख्य तथा अनुवाकानुक्रमणी, देवतानुक्रमणी, छन्दोनुक्रमणी २० आदि १० अनुक्रमणियां लिखी हों।
काल पाणिनि ने ब्रह्मज्ञाननिधि गृहपति शौनक को उद्धृत किया है।" १. देखो इसी पृष्ठ की टि० २। । २. ऋक्प्राति० २०८१॥
३. शतपथ १४।६।६।१॥ २५ ४. ऋक्प्राति० ११५१॥ वायुपुराण ६२।६३ पूना सं० । विष्णु पुराण ३४॥२०॥ ब्रह्माण्ड पुराण ३५।१।। बंबई संस्क ।
५. अष्टा० १११३१६,१७,१८ के नियम।
६. तासां शाकल्पस्य स्थविरस्य मतेन किञ्चिदुच्यते । ऋक्प्राति० टीका २१८१॥ इतराऽस्माकं शाक लानां स्थितिः । ऋप्राति० टीका २।२॥ को ७. शौनकादिभ्यछन्दसि । अष्टा० ४।३।१०६॥