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________________ पाणिनीय अप्टाध्यायो में स्मृत प्राचाय १८३ इन ग्रन्थों में से प्रथम दो ग्रन्थ वैयाकरण शाकटायन विरचित प्रतीत होते हैं । शेष ग्रन्थों का रचयिता सन्दिग्ध है । ८-शाकल्य (३१०० वि० पूर्व) पाणिनि ने शाकल्य प्राचार्य का मत अष्टाध्यायी में चार बार उद्धृत किया है।' शौनक' और कात्यायन ने भी अपने प्रातिशाख्यों ५ में शाकल्य के मतों का उल्लेख किया है । ऋक्प्रातिशाख्य में शाकल के नाम से उद्धृत समस्त नियम शाकल्य के ही हैं। महाभाष्यकार ने ६।१।१२७ में शाकल्य के नियम का शाकल नाम से उल्लेख किया है । लक्ष्मीधर ने गार्हस्थ्य काण्ड पृष्ठ १६६ में शाकल्य के किसी व्याकरण संबन्धी नियम की ओर संकेत किया है। शाकल्य का शाकल नामान्तर से भी क्वचित उल्लेख मिलता है। इस नाम में 'शकल' से प्रौत्सर्गिक 'अण्' प्रत्यय जानना चाहिये । परिचय शाकल्य पद तद्धितप्रत्यायान्त है, तदनुसार शाकल्य के पिता का नाम शकल था। पाणिनि ने शकल पद गर्गादिगण में पढ़ा है। १५ १. सम्बुद्धौ शाकस्यस्येतावनार्षे । अष्टा० १११।१६। इकोऽसवणे शाकल्यस्य ह्रस्वश्च । अष्टा ६।१।१२७॥ लोपः शाकल्यस्य । अष्टा० ८।३॥१६॥ सर्वत्र शाकल्यस्य । ८।४॥५१॥ २. ऋक्प्राति० ३।१३,२२॥ ४॥१३॥ इत्यादि । ३. वाज० प्राति० ३॥१०॥ ४. ऋक्प्राति० ६।१४,२०,२७ इत्यादि । ५. सिन्नित्यसमासयोः शाकलप्रतिषेधो वक्तव्यः । इस वार्तिक में अष्टा० ६।१।१२७ में निर्दिष्ट शाकल्य मत का प्रतिषेध किया है। ६. हारीत सूत्र 'जातपुत्रायाधानम्' को उद्धृत करके लक्ष्मीधर लिखता है-जातपुत्रायाधानमित्यत्र जातपुत्रशब्द: प्रथमाबहुवचनान्तः शाकल्य मता- २५ श्रयेण यकारपाठः अर्थात 'जातपुत्राः आधानम' में शाकल्य मत से विसर्ग को यकार हो गया है। ____७. पुनरुक्तानि लुप्यन्ते पदानीत्याह शाकलः । कात्य० प्राति० ४।१७७, १८१ टीका में उद्धृत प्राचीन श्लोक । ८. गर्गादिभ्यो यन् । अष्टा० ४।१ । १०५ ॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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