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________________ १८२ संस्कृतव्याकरण-शास्त्र का इतिहास ४. ऋक्तन्त्र-नागेश भट्ट लघुशब्देन्दुशेखर के प्रारम्भ में ऋ. तन्त्र को शाकटायन-प्रणीत कहता है।' सामवेदीय सर्वानुक्रमणो के रचयिता किसी हरदत्त का भी यहो मत है।' भट्टोजि दीक्षित और अर्वाचीन पाणिनीय शिक्षा के दोनों टीकाकार ऋक्तन्त्र को प्राचार्य औदवजि-विरचित मानते हैं।' ५. लघ-ऋक्तन्त्र-किन्हीं के मत में यह शाकटायनप्रणीत है, परन्तु यह ठीक नहीं है । इस में पृष्ठ ४६ पर पाणिनि का उल्लेख मिलता है। पाणिनीय अष्टाध्यायी के अनुसार शाकटायन पाणिनि से प्राचीन है। ६. सामतन्त्र-कई इसे शाकटायन कृत मानते हैं, कई गार्ग्य कृत' । सामवेदानुक्रमणी का कर्ता हरदत्त इसे प्रौदवजि-विरचित मानता है ।' ७. पञ्चपादी-उणादिसूत्र-श्वेतवनवासी तथा नागेश भट्ट आदि कतिपय अर्वाचीन वैयाकरण पञ्चपादी उणादि शाकटायन१५ विरचित मानते हैं । नारायण भट्ट आदि कतिपय विद्वान् इसे पाणिनीय स्वीकार करते हैं। हम ऊपर लिख चके हैं कि शाकटायन अनेक धातूमों से एक पदकी व्युत्पत्ति दर्शाता है, परन्तु समस्त पञ्चपादी उणादि में एक भी शब्द ऐसा नहीं है, जिस की अनेक धातुओं से व्युत्पत्ति दर्शाई हो । २. अतः ये उणादि सूत्र शाकटायन-प्रणीत नहीं हैं। इस पर विशेष विचार उणादि के प्रकरण में किया है। श्राद्धकल्प --हेमाद्रि ने चतुर्वर्गचिन्तामणि में शाकटायन के श्राद्धकल्प का एक वचन उद्धृत किया है। यह ग्रन्थ इस समय अप्राप्य है । अतः इस के विषय में हम कुछ विशेष नहीं जानते । २५ १. देखो पूर्व पृष्ठ ७३ टि० ६। २. देखो पूर्व पृष्ठ ७४ टि० ।। ३. येयं शाकटायनादिभिः पञ्चपादी विरचिता । उणादिवृत्ति पृष्ठ १,२ । ४. पूर्व पृठ १७६ टि०, २। ५. अकारमुकुरस्त्यादी उकारं ददुंरस्य च । बभाग पाणिनिस्तौ तु व्यत्ययेनाह भोजराट् । उणादिवृत्ति पृष्ठ १० । ३० ६. पूर्व पृष्ठ १७८ टि० ४ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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