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________________ १० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास धातुओं से को थी और कई पदों की एक-एक धातु से ।' __ स्कन्द को व्याख्यानुसार शाकटायन ने 'इग्' धातु से कारित (=णिच-इ) प्रत्यय और 'अस्' के सकार से केवल स (सू-प्रथमकवचन) और सकारादि सन् आदि प्रत्ययों को कल्पना की थी। अनेक धातुओं से व्युत्पत्ति-नाम पदों को अनेक धातुओं से व्युत्पत्ति केवल शाकटायन आचाय ने नहीं की, अपितु शाकपूणि आदि अनेक प्राचोन नैरुक्त प्राचार्य इस प्रकार को व्युत्पत्ति करते थे। ब्राह्मण आरण्यक ग्रन्थों में भी इस प्रकार की अनेक व्युत्पत्तियां उपलब्ध होती हैं। यथा हृदय-तदेतत् त्र्यक्षरं हृदयमिति । ह इत्येकमक्षरम्, हरन्त्यस्मै स्वाश्चान्ये च य एवं वेद । द इत्येकमक्षरम्, दमन्त्यस्मै स्वाश्चान्ये च य एवं वेद । यमित्येकमक्षरम्, एति स्वर्ग लोकं एवं वेद ।' ___ भग–भ इति भासयतीमाल्लोकान्, र इति रञ्जयतीमानि भूतानि, ग इति गच्छन्त्यस्मिन्नागच्छन्त्यस्मादिमाः प्रजाः । तस्माद् १५ भरगत्वाद् भर्गः । शब्दों का त्रिविधत्व-न्यासकार जिनेन्द्र बुद्धि ३।३।१ में लिखता है तदेवं निरुक्तकारशाकटायनदर्शनेन त्रयो शब्दानां प्रवृत्तिः । जातिशब्दाः गुणशब्दाः क्रियाशब्दा इति । १. शाकटायनाचार्योऽनेकैश्च धातुभिरेकमभिधानमनुविहितवान् एकेन चैकम् । निरुक्त टीका १।१३॥ निरुक्त के इस प्रकरण की दुर्ग व्याख्या खींचातानी पूर्ण है । सम्भव है कि उसने यह व्याख्या उपनिषदों में असकृत् निर्दिष्ट सत्यं त्रीण्यक्षराणि पाठ से भ्रान्त होकर की होगी। निरुक्त के इस प्रकरण की ठीक व्याख्या स्कन्द स्वामी ने की है, दुर्ग की व्याख्या में तो निरुक्त-पदों का २५ अर्थ भी स्पष्ट नहीं होता। २. अग्नि:-त्रिभ्याख्यातेभ्यो जायत इति शाकपूणिः इतादक्ताद् दग्धाद्वा नीतात् , स खल्वेतेरकामादत्ते, गकारमनक्तेर्वा, दहतेर्वा नी: परः । निरुक्त ७।१४॥ ३. शत० १४।८।४।१॥ ४. मैत्रायण्यारण्यक ६७॥ ही ५. तुलना करो-प्रक्रियाकौमुदी भाग २, पृष्ठ ६०० के पाठ के साथ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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