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________________ १७६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास शैशिरस्य तु शिष्यस्य शाकटायन एव च ।' यद्यपि इस श्लोकांश और एतत्सहपठित अन्य श्लोकों का पाठ बहुत भ्रष्ट अशुद्ध है, तथापि इतना व्यक्त होता है कि शाकटायन शैशिरि या उस के शिष्य का शिष्य था। इन श्लोकों की प्रामाणिकता अभी विचारणीय है । तथा इस में किस शाकटायन का उल्लेख है यह भी अज्ञात है। पुत्र-वामन काशिका ६।२।१३३ में 'शाकटायनपुत्र उदाहरण देता है । यही उदाहरण रामचन्द्र और भट्टोजि दीक्षित ने भी दिया १० जीवन की विशिष्ट घटना-शाकटायन के जीवन की एक घटना महाभाष्य ३।२।११५ में इस प्रकार लिखी है अथवा भवति वै कश्चिद् जाग्रदपि वर्तमानकालं नोपलभते । तद्धथा-वैयाकरणानां शाकटायनो रथमार्ग प्रासीन: शकटसार्थ यन्तं नोपलेभे। १५. अर्थात्-जागता हुप्रा भो कोई पुरुष वर्तमाल काल को नहीं ग्रहण करता । जैसे रथमार्ग पर बैठे हुए वैयाकरणों में श्रष्ठ शाकटायन ने सड़क पर जाते हुए गाड़ियों के समूह को नहीं देखा । महाभाष्य में इस घटना का उल्लेख होने से प्रतीत होता है कि शाकटायन के जीवन की यह कोई महत्त्वपूर्ण लोकपरिज्ञात घटना है। २० अन्यथा इसका उदाहरण रूप से उल्लेख न होता। श्रेष्ठत्व-काशिका ११४८६ में एक उदाहरण है-'अनुशाकटायनं वैयाकरणा:' अर्थात् सब वैयाकरण शाकटायन से हीन हैं। काशिका ११४।८७ में इसी भाव का दूसरा उदाहरण 'उपशाकटायन वैयाकरणाः' मिलता हैं। २५ श्रेष्ठता का कारण-निरुक्त १११२ तया महाभाष्य ३३।१ से विदित होता है कि वैयाकरणों में शाकटायन आचार्य ही ऐसा था जो सम्पूर्ण नाम शब्दों को प्राख्यातज मानता था। निश्चय ही शाक १. मद्रास राजकीय हस्तलेख संग्रह सूचीपत्र जिल्द ४ भाग १ सी, सन् १९२८, पृष्ठ ५४६,६६। २. तत्र नामान्याख्यातजानीति शाकटायनो नरुक्तसमयश्च । निरुक्त । नाम च धातुजमाह निरुक्ते व्याकरणे शकटस्य च तोकम् । महाभाष्य ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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