SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाणिनीय अष्टाध्यायी में स्मृत प्राचाय १७५ अन्य प्रत्ययों का नहीं। इतना ही शास्त्रकार पाणिनि का अभिप्राय वर्धमान ने शकट का अर्थ शकटमिव भारक्षमः किया है। शाकटायन और काण्व-अनन्तदेव ने शुक्लयजुः-प्रातिशाख्य ४। १२६ के भाष्य में पुराण के अनुसार शाकटायन को काण्व का शिष्य ५ कहा है और पक्षान्तर में उसे ही काण्व बताया है। पुनः शुक्लयजु:प्रातिशाख्य ४।१६१ के भाष्य में लिखा है कि शाकटायन काण्व का पर्याय है मत युक्त नहीं है। संस्काररत्नमाला में भट्ट गोपीनाथ ने गोत्रप्रवर प्रकरण में दो शाकटायनों का उल्लेख किया है। एक वाघ्रयश्ववंश्य और दूसरा काण्ववंश्य । इन से इतना निश्चित है कि शाकटायन का १० संबन्ध काण्व वंश के साथ अवश्य है। हमारा विचार है शुक्लयजूःप्रातिशाख्य और अष्टाध्यायी में स्मत शाकटायन काण्ववंश का हैं। यदि यह बात प्रमाणान्तर से और पुष्ट हो जाय तो शाकटायन का समय निश्चित करने में बहुत सुगमता होगी। __ मत्स्य पुराण १६६।४४ के निर्देशानुसार कोई शाकटायन गोत्र १५ आङ्गिरस भी है। प्राचार्य-हम ऊपर लिख चुके हैं कि अनन्तदेव पुराणानुसार शाकटायन को काण्व का शिष्य मानता है। परन्तु शैशिरि शिक्षा के प्रारम्भ में उसे शैशिरि का शिष्य कहा है १. इस का सोपपत्तिक वर्णन हम अष्टाध्यायी की वैज्ञानिक व्याख्या में २० करंग । २. गणरत्नमहोदधि पृष्ठ १४६ । ३. असौ पदस्य वकारो न लुप्यते असस्थाने स्वरे परे शाकटायनस्याचार्यस्य मतेन । काण्वशिष्यः सः; पुराणे दर्शनात् । तेन शिष्याचार्ययोरेकमतत्वात् काण्वमतेनाप्ययमेव । यद्वा शाकटायन इति काण्वाचार्यस्यैव नामान्तरमुदा- २५ हरणम् । ४. यद्वा सुपदेऽशाकटायनः इति अप्रश्लेषेण सूत्रं व्याख्यायते । नेदं काण्वमतमिति कैश्चिदुक्तम्, शाकटायन इति शब्दस्य काण्वपर्यायत्वात् 'परिण इति शाकटायन (वा० प्र० ३८७) इत्यादौ तथा दृष्टत्वादिति निरस्तम् । ५. संस्काररत्न माला पृष्ठ ४३०। ६. संस्काररत्नमाला पृष्ठ ४३७ । ३०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy