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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
मत उद्धृत किये हैं ।" टीकाकारों के मतानुसार वे द्रोण भारद्वाज के हैं । यह हम पूर्व लिख चुके हैं ।
वंश - महाभाष्य ३ | ३ | १ में शाकटायन के पिता का नाम शकट लिखा है । पाणिनि ने शकट शब्द नडादिगण" में पढ़ा है । वैयाकरणों के मतानुसार शकट उसके पितामह का नाम होना चाहिये, परन्तु वैयाकरणों की गोत्राधिकार को वर्तमान व्याख्या सम्पूर्ण प्राचीन १५ इतिहास गोत्र प्रवराध्याय से न केवल विपरीत ही है अपितु गोत्रधिकार प्रत्ययों का अनन्तरापत्य में दृष्ट प्रयोगों की उपपत्ति में क्लिष्ट कल्पना करनी पड़ती है अतः यह व्याख्या त्याज्य है । गोत्राधिकार विहित प्रत्यय अनन्तर अपत्य में भी होते हैं, और पौत्रप्रभृति अपत्यों के लिए इन्हीं गोत्राधिकार विहित प्रत्ययों का प्रयोग होता है,
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- शाकटायन ( ३००० वि० पू० )
पाणिनि ने अष्टाध्यायी में शाकटायन का उल्लेख तीन बार किया है ।" वाजसनेयप्रातिशाख्य' तथा ऋक्प्रातिशाख्य' में भी इसका अनेक स्थानों में निर्देश मिलता है । यास्क ने अपने निरुक्त में क्याकरण शाकटायन का मत उद्धृत किया है ।" पतञ्जलि ने स्पष्ट शब्दों में शाकटायन को व्याकरणशास्त्र का प्रवक्ता कहा है ।
परिचय
१. द्र० पूर्व पृष्ठ १७२ टि०६ ।
२. लङः शाकटायनस्यैव । श्रष्टा० ३ | ४|१११ || व्योलंघुप्रयत्नतरः शाकटायनस्य । भ्रष्टा० ८|३|१८|| त्रिप्रभृतिषु शाकटायनस्य । अष्टा० ८|४|५०॥ ३. ३।६,१२,८७ ॥ इत्यादि ॥
४. १।१६।१३।३६ ॥
५. तत्रनामान्याख्यातजानीति शाकटायनो नैरुक्तयनयश्च । निरु० ११२ ॥ ६. व्याकरणे शकटस्य च तोकम् । महाभाष्य ३ | ३ | १|| वैयाकरणानां शाकटायनो । महाभाष्य ३ । २ । ११५ ।।
. व्याकरणे शकटस्य च तोकम् ।
७.
८. नडादिभ्यः फक् । प्रष्टा० ४ १६६ ॥