SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाणिनीय अष्टाध्यायो में स्मृत आचाय १७३ काल हम ऊपर अनेक भारद्वाजों का उल्लेख कर चुके हैं। अष्टाध्यायी में केवल गोत्रप्रत्ययान्त भारद्वाज शब्द से निर्देश किया है। अतः जब तक यह निर्णीत न हो कि वह कौन भारद्वाज है तब तक उसका कालज्ञान होना कठिन है । हमारे विचार में यह भारद्वाज दीर्घजीवी- ५ तम अनूचानतम वैयाकरण भरद्वाज बार्हस्पत्य का पुत्र द्रोण भारद्वाज है । द्रोणाचार्य की आयु भारतयुद्ध के समय ४०० वर्ष की थी, ऐसा महाभारत में स्पष्ट लिखा है।' पुनरपि पाणिनीय अष्टक में भारद्वाज का साक्षात् उल्लेख होने से निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यह विक्रम से ३००० वर्ष प्राचीन अवश्य है। भारद्वाज व्याकरण इस व्याकरण के केवल दो मत ही प्राचीन ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं । उनसे इसके स्वरूप और परिमाण आदि के विषय में कोई विशेष ज्ञान नहीं होता । वाजसनेय प्रातिशाख्या अ०८ के अन्त में आख्यातों को भारद्वाज-दृष्ट कहा है । उसका अभिप्राय मृग्य है। १५ भारद्वाज वार्तिक-महाभाष्य में बहुत स्थानों पर भारद्वाजोय वार्तिकों का उल्लेख मिलता है। वे प्रायः कात्यायनीय वार्तिकों से मिलते हैं और उनकी अपेक्षा विस्तृत तथा विस्पष्ट हैं । हमारा विचार है ये भारद्वाज वातिक पाणिनीय अष्टाध्यायी पर लिखे गये हैं। इसके कई प्रमाण वार्तिककार भारद्वाज प्रकरण में लिखगे। २० अन्य ग्रन्थ प्रायुर्वेद संहिता- भारद्वाज ने कायचिकित्सा पर एक संहिता रची थी। इसके अनेक उद्धरण आयुर्वेद के टीकाग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं। अर्थशास्त्र-चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में भारद्वाज के अनेक २५ १. वयसाऽशीतिपञ्चक: (८०४५=४००) । द्रोण पर्व १२५४७३, १९२१६४॥ विशेष द्र०-भारतवर्ष का बृहद् इतिहास, भाग १ पृष्ठ १५० (द्वि० सं)। २. महाभाष्य १।१।२०,५६।। ३।११३८॥ इत्यादि ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy