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सस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
६-भारद्वाज (३००० वि० पूर्व) भारद्वाज का उल्लेख पाणिनीय तन्त्र में केवल एक स्थान पर मिलता है।' अष्टाध्यायी ४।२।१४५ में भी भारद्वाज शब्द पाया जाता है, परन्तु काशिकाकार के मतानुसार वह भारद्वाज पद देशवाची है, आचार्यवाची नहीं। भारद्वाज का व्याकरणविषयक मत तैत्तिरीय प्रातिशाख्या १७।३ और मैत्रायणीय प्रातिशाख्य २१५६ में मिलता
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परिचय भारद्धाज के पूर्व पुरुष का नाम भरद्वाज है । सम्भवतः यह १० भरद्वाज वही है जो इन्द्र का शिष्य दीर्घजीवी अनूचानतम भरद्वाज था।
चतुर्वेदाध्यायो न्यायमञ्जरी में जयन्त भारद्वाज को चतुर्वेदाध्यायी कहता हैं ।
अनेक भारद्वाज-प्रश्नोपनिषद् ६१ में सुकेशा भारद्वाज का उल्लेख है, यह हिरण्यनाभ कौसल्य का समकालिक है बृहदारण्यक १५ उपनिषद् ४३११५ में गर्दभी विपीत भारद्वाज का निर्देश है, यह याज्ञ
वल्क्य का समकालिक है। कृष्ण भारद्वाज का उल्लेख काश्यप संहिता सूत्रस्थान २७।३ में मिलता है । द्रोण भारद्वाज द्रोणाचार्य के नाम से प्रसिद्ध ही है। कौटिल्य अर्थशास्त्र में भी भारद्वाज के अनेक मत उद्धृत है । टीकाकारों के मतानुसार वे मत द्रोण भारद्वाज के हैं ।
भारद्वाज देश-काशिकाकार जयादित्य के मतानुसार अष्टाध्यायी ४।२।१४५ में भारद्वाज देश का उल्लेख है। वायुपुराण ४५॥ ११६ में उदीच्य देशों में भारद्वाज देश की गणना की है।"
होने वाले 'मीमांसक लेखावली' के दूसरे भाग में भी छपेगा।
१. ऋतो भारद्वाजस्य । अष्टा० ७।२।६३॥ २. कृकर्णपर्णाद् भारद्वाजे । ३. भारद्वाजशब्दोऽपि देशवचन एव, न गोत्रशब्दः । काशिका ४।२।१४५॥ ४. अनुस्वारेऽण्विति भारद्वाजः । ५. चतुर्वेदाध्यायी भारद्वाज इति । पृष्ठ २५६, लाजरस प्रेस काशी । ६. १।८॥१॥१५॥ १।१७॥५॥६॥ ३॥ ७. पात्रेयाश्च भरद्वाजाः प्रस्थलाश्च कसेरुकाः ।