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________________ २२ पाणिनीय अष्टाध्यायी में स्मृत आचार्य १६६ इसका एक मत उद्धृत किया है ।' श्रीपतिदत्त ने कातन्त्र परिशिष्ट के 'हेतौ वा' सूत्र की वृत्ति में चाक्रवर्मण का उल्लेख किया है | इनसे इस का व्याकरणप्रवक्तृत्व विस्पष्ट है । परिचय वंश - चाक्रवर्मण पद अपत्यप्रत्ययान्त है । तदनुसार इस के पिता ५ का नाम चक्रवर्मा था । गुरुपद हालदार ने वायुपुराण के अनुसार चक्रवर्मा को कश्यप का पौत्र लिखा है । 3 काल यह आचार्य पाणिनि से प्राचीन है इतना निश्चित है | पञ्चपादी उणादि-सूत्र प्रापिशलि की रचना है, यह हम उणादि - प्रकरण में १० लिखेंगे। हम ऊपर लिख चुके हैं कि उणादि ( ३ | १४४ ) में चाक्रवर्मण का उल्लेख है । अतः इस का काल आपिशलि से भी पूर्व अर्थात् विक्रम से तीन सहस्र वर्ष पूर्व अवश्य मानना होगा । चाक्रवर्मण-व्याकरण १५ इस व्याकरण का अभी तक कोई सूत्र उपलब्ध नहीं हुआ । द्वय की सर्वनाम संज्ञा -- पाणिनीय मतानुसार 'द्वय' पद की सर्वनाम संज्ञा नहीं होती । भट्टोजि दीक्षित ने माघ १२ । १३ प्रयुक्त 'द्वयेषाम्' पद में चाक्रवर्मण व्याकरणानुसार सर्वनामसंज्ञा का उल्लेख किया है । और 'नियतकालाः स्मृतय:' इस नियम के अनुसार उसका साधुत्व प्रतिपादन किया है। इससे प्रतीत होता है कि चाक्रवर्मण २० आचार्य के व्याकरणानुसार द्वय पद की सर्वनाम संज्ञा होती थी । आधुनिक वैयाकरण 'नियतकालाः स्मृतय:' इस नियम के अनुसार १. ११/२७, तथा टि० ४ । २. काशिका ६ । ४ । १७० ॥ ३. व्याकरण दर्शनेर इतिहास पृष्ठ ५१६ । ४. यत्तु कश्चिदाह चाकवर्मणव्याकरणे द्वयपदस्यापि सर्वनामताभ्युपगमात् २५ तद्रीत्या श्रयं प्रयोग इति, तदपि न । मुनित्रयमतेनेदानीं साध्वसाधुविभागः । तस्यैवेदानींतन शिष्टैर्वेदाङ्गतया परिगृहीतत्वात् । दृश्यन्ते हि नियतकाला: स्मृतयः । यथा कली पाराशरी स्मृतिरिति । शब्दको० ११ १२७ ॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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