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पाणिनीय अष्टाध्यायी में स्मृत आचार्य
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इसका एक मत उद्धृत किया है ।' श्रीपतिदत्त ने कातन्त्र परिशिष्ट के 'हेतौ वा' सूत्र की वृत्ति में चाक्रवर्मण का उल्लेख किया है | इनसे इस का व्याकरणप्रवक्तृत्व विस्पष्ट है ।
परिचय
वंश - चाक्रवर्मण पद अपत्यप्रत्ययान्त है । तदनुसार इस के पिता ५ का नाम चक्रवर्मा था । गुरुपद हालदार ने वायुपुराण के अनुसार चक्रवर्मा को कश्यप का पौत्र लिखा है । 3
काल
यह आचार्य पाणिनि से प्राचीन है इतना निश्चित है | पञ्चपादी उणादि-सूत्र प्रापिशलि की रचना है, यह हम उणादि - प्रकरण में १० लिखेंगे। हम ऊपर लिख चुके हैं कि उणादि ( ३ | १४४ ) में चाक्रवर्मण का उल्लेख है । अतः इस का काल आपिशलि से भी पूर्व अर्थात् विक्रम से तीन सहस्र वर्ष पूर्व अवश्य मानना होगा ।
चाक्रवर्मण-व्याकरण
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इस व्याकरण का अभी तक कोई सूत्र उपलब्ध नहीं हुआ । द्वय की सर्वनाम संज्ञा -- पाणिनीय मतानुसार 'द्वय' पद की सर्वनाम संज्ञा नहीं होती । भट्टोजि दीक्षित ने माघ १२ । १३ प्रयुक्त 'द्वयेषाम्' पद में चाक्रवर्मण व्याकरणानुसार सर्वनामसंज्ञा का उल्लेख किया है । और 'नियतकालाः स्मृतय:' इस नियम के अनुसार उसका साधुत्व प्रतिपादन किया है। इससे प्रतीत होता है कि चाक्रवर्मण २० आचार्य के व्याकरणानुसार द्वय पद की सर्वनाम संज्ञा होती थी ।
आधुनिक वैयाकरण 'नियतकालाः स्मृतय:' इस नियम के अनुसार
१. ११/२७, तथा टि० ४ ।
२. काशिका ६ । ४ । १७० ॥ ३. व्याकरण दर्शनेर इतिहास पृष्ठ ५१६ । ४. यत्तु कश्चिदाह चाकवर्मणव्याकरणे द्वयपदस्यापि सर्वनामताभ्युपगमात् २५ तद्रीत्या श्रयं प्रयोग इति, तदपि न । मुनित्रयमतेनेदानीं साध्वसाधुविभागः । तस्यैवेदानींतन शिष्टैर्वेदाङ्गतया परिगृहीतत्वात् । दृश्यन्ते हि नियतकाला: स्मृतयः । यथा कली पाराशरी स्मृतिरिति । शब्दको० ११ १२७ ॥