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१६८ संस्कृतव्याकरण-शास्त्र का इतिहास
५. निरुक्त -यास्क ने अपने निरुक्त ४।३ में गालव का एक निर्वचनसबन्धी पाठ उदधृत किया है। उससे प्रतीत होता है कि गालव ने कोई निरुक्त रचा था। इस विषय में श्री पं० भगवद्दत्तजी विर
चित वैदिक वाङ् मय का इतिहास भाग १ खण्ड २ पृष्ठ १७६-१८० ५ देखें।
६. देवत ग्रन्य-बृहद्देवता में चार स्थान पर गालव का · मत उद्धृत है। उनमें से १ । २४ में गालव को पुराण कवि कहा है।' यह मत निर्वचनसंबन्धो है। शेष तोन स्थान पर ऋचाओं के देवता
संबन्धी मतों का निर्देश है। उनसे प्रतीत होना है कि गालव ने स्व१० प्रोक्त संहिता के किसी अनुक्रमणी गन्थ का भी प्रवचन किया था ।
७. शालाक्य-तन्त्र-धन्वन्तरि शिष्य गालव ने शालाक्य-तन्त्र की रचना को थी। सुश्रुत के टीकाकार डल्हण ने इसका निर्देश किया
८. कामसूत्र-वात्स्यायन कामसूत्र ११:१० में लिखा है १५ पाञ्चाल बाभ्रव्य ने सात अधिकरणों में कामशास्त्र का संक्षेप किया
था। ____६. भू-वर्णन-वायुपुराण ३४।६३ में मेरुकणिका के वर्णन में गालव का मत उल्लिखित है । तदनुसार उसके मत में 'मेरुकणिका का आकार 'शराव' के सदृश है-शरावं चैव गालवः । इस से प्रतीत होता है कि गालव का कोई भूवर्णन भी था । भूवर्णन ज्योतिष का का अंग है । अतः सम्भव है गालव ने कोई ज्योतिष संहिता लिखी हो।
५-चाक्रवर्मण (३००० वि० पूर्व) २५ चाक्रवर्मण प्राचार्य का नाम पाणिनीय अष्टाध्यायी तथा उणादिसूत्रों में मिलता है । भट्टोजि दीक्षित ने शब्दकौस्तुभ में
१. पूर्व पृष्ठ १६६ टि० ४। २. पूर्व पृष्ठ १६६ टि० ५ । ३. पूर्व पृष्ठ १६६ टि०६। ४. पूर्व पृष्ठ १६२ टि० ४। ५: सप्तभिरधिकरणर्बाभ्रव्यः पाञ्चालः संचिक्षेप । ६. ई चाक्रवर्मणस्य । अष्टा ६।१११३०॥ ७. कपश्चाक्रवर्मणस्य । पञ्च० उ० ३।१४४।। दश० उ० ७११॥