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पाणिनोय अष्टाध्यायो में स्मृत प्राचार्य
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धन्वन्तरि शिष्य गालव ही शब्दानुशासन का प्रवक्ता होवे तो गालव का काल धन्वन्तरि शिष्य गार्य के समान (द्र० पृष्ठ १६२) विक्रम से लगभग साढे पांच सहस्र वर्ष पूर्व होगा।
गालव व्याकरण हम पूर्व (पृष्ठ १६५) गालव का एक मत उद्धृत कर चुके हैं- ५ इकां यण्भिर्व्यवधानं व्याडिगालवयोरिति वक्तव्यम् । यह वचन पुरुषोत्तमदेव ने भाषावृत्ति ६।११७७ में उद्धृत किया है । तदनुसार लोक में 'दध्यत्र मध्वत्र' के स्थान में 'दधियत्र मधुवत्र' प्रयोग भी साधु हैं । यह यण्व्यवधानपक्ष प्राचार्य पाणिनि से भो अनुमोदित है । पाणिनि ने 'भूवादयो धातवः" सूत्र में वकार का व्यवधान किया है। १० हम इस विषय पर पूर्व विस्तार से लिख चुके हैं।
अन्य ग्रन्थ १. संहिता-शैशिरि-शिक्षा के प्रारम्भ में गालव को शौनक का शिष्य और शाखा का प्रवर्तक कहा है। शिक्षा का पाठ अत्यन्त भ्रष्ट
२. ब्राह्मण-देखो पं० भगवद्दत्तजी कृत वैदिक वाङमय का इतिहास भाग २ पृष्ठ ३० ।
३. क्रम-पाठ-महाभारत शान्तिपर्व ३४२।१०३ में पाञ्चाल बाभ्रव्य गालव को क्रमपाठ का प्रवक्ता कहा है। ऋक्प्रातिशाख्य ११।६५ में इसे प्रथम क्रमप्रवक्ता लिखा है।
४. शिक्षा-महाभारत शान्तिपर्व ३४२।१०४ के अनुसार गालव ने शिक्षा का प्रणयन किया था। १. अष्टा० १॥३॥१॥
२. देखो पूर्व पृष्ठ २८,२६ । . ३. मुद्गलो गालवो गार्यः शाकल्यः शैशिरिस्तथा । पञ्च शौनकशिष्यास्ते
शाखाभेदप्रवर्तकाः । वैदिक वाङ्मय का इतिहास भाग १ पृष्ठ १८७, (द्वि० . २५ सं०)पर उद्धृत । श्री पं० भगवद्दत्तजी ने अनेक पुराणों के आधार पर पाठ का संशोधन करके इसे शाकल्य का शिष्य माना है। वै० वा० इ० भाग १ पृ० १८७ (द्वि० सं०) ॥ ४. पूर्व पृष्ठ १६६ टि० २।
५. इति प्र बाभ्रव्य उवाच च क्रमं क्रमप्रवक्ता प्रथमं शशंस च । इसकी व्याख्या में उव्वट ने लिखा है-बाभ्रव्यो बभ्रुपुत्रो भगवान् पाञ्चाल इति। ३० , ६. पूर्व पृष्ठ १६६ टि० २ ।