________________
संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
पिता का नाम गलव वा गलु होगा। महाभारत शान्तिपर्व ३४२। १०३, १०४ में पाञ्चाल बाभ्रव्य गालव' को क्रमपाठ और शिक्षा का प्रवक्ता कहा है। शिक्षा का संबन्ध व्याकरणशास्त्र के साथ है। प्रसिद्ध वैयाकरण आपिशलि, पाणिनि और चन्द्रगोमो ने भो शिक्षाग्रन्थों का प्रवचन किया है । तदनुसार यदि शिक्षा का प्रणेता पाञ्चाल बाभ्रव्य गालव ही व्याकरणप्रवक्ता हो तो गालव का बाभ्रव्य गोत्र होगा और पाञ्चाल उसका देश । सुश्रुत के टीकाकार डल्हण ने गालव को धन्वन्तरि का शिष्य कहा है । यदि यही गालव व्याकरणप्रवक्ता हो तो गालव का एक प्राचार्य धन्वन्तरि होगा ।
अन्यत्र उल्लेख–निरुक्त बृहद्देवता', ऐतरेय पारण्यक और वायु-पुराण में गालव के मत उधृत हैं । चरक संहिता के प्रारम्भ में भी गालव का उल्लेख है।
काल
अष्टाध्यायी में गालव का उल्लेख होने से निश्चित है कि वह १५ पाणिनि से प्राचीन है । हमारे मत में महाभारत में उल्लिखित
पाञ्चाल बाभ्रव्य गालव ही शब्दानुशासन का प्रवक्ता है । यही निरुक्त-प्रवक्ता भी है । अतः उसका काल शौनक और भारत-युद्ध से प्राचीन है। बृहद्देवता १।२४ में गालव को पुराण कवि कहा है। यदि
१. कई बाभ्रव्य पाञ्चाल और गालव को पृथक् मानते हैं। परन्तु हमारा मत है कि ये तीनों शब्द एक ही व्यक्ति के लिए प्रयुक्त हैं । विशेष द्र. वैदिक वाङ्मय का इतिहास, भाग १, पृष्ठ १९०-१६१ (द्वि० सं०)।
२. पाञ्चालेन क्रमः प्राप्तस्तस्माद् भूतात् सनातनात् । बाभ्रव्यगोत्र: स बभूव प्रथम क्रमपारगः । नारायणाद् वरं लब्ध्वा प्राप्य योगमुत्तमम् । क्रम प्रणीय शिक्षां च प्रणयित्वा स गालव: ॥
३. पूर्व पृष्ठ १६२ टि० ४। ४. शितिमांसतो मेदस्त इति गालव: ४१३॥ । ५. ११२४॥ ५॥३६॥ ६॥४३॥ ७॥३८॥
६. नेदमकस्मिन्नहनि समापयेदिति जातुकर्ण्य: । समापयेदिति गालवः ।
॥३३॥
७. शरावं चैव गालवः । ३४ । ६३ ॥ ८. सूत्रस्थान ११० ॥ । ६. नवभ्य इति नैरुक्ता: पुराणा: कवयश्च ये । मघुक: श्वेतकेतुश्च गालव"श्चैव मन्यते ॥