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पाणिनीय अष्टाध्यायी में स्मृत
आचार्य
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के तक्षशास्त्र का है ।'
६. लोकायत - शास्त्र - गणपति शास्त्री ने अर्थशास्त्र की किसी प्राचीन टीका के अनुसार अपनी व्याख्या में लिखा है - लोकायतं न्यायशास्त्र, ब्रह्मगायं प्रणीतम् । भाग १, पृष्ठ २७ ।
७. देवर्षि चरित - महाभारत शान्तिपर्व २१० २१ में गार्ग्य को ५ देवर्षिचरित का कर्ता कहा है ।"
८. साम-तन्त्र — पं० सामव्रत सामश्रमी ने अक्षरतन्त्र की भूमिका में गाय को सामतन्त्रका प्रवक्ता लिखा है । किसो हरदत्तविरचित सर्वानुक्रमणी में सामतन्त्र को प्रदवजि प्रोक्त कहा है । 3
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इन में निरुक्त, सामपदपाठ निश्चय ही वैयाकरण गार्ग्य कृत है, शेष ग्रन्थों के विषय में हम निश्चित रूप से नहीं कह सकते ।
। ४ – गालव (३१०० वि० पू० )
पाणिनि ने अष्टाध्यायी में गालव का उल्लेख चार स्थानों में किया है। पुरुषोत्तमदेव ने भाषावृत्ति ६ । १।७७ में गालव का व्याक - १५ रण सवन्धी एक मत उद्धृत किया है। इनसे विस्पष्ट है कि गालव ने कोई व्याकरणशास्त्र रचा था ।
परिचय
गालव का कुछ भी परिचय हमें प्राप्त नहीं होता । यदि गालव शब्द अन्य वैयाकरण नामों के सदृश तद्धितप्रत्ययान्त हो तो इसके २०
१. वेदार्थावगमनस्य बहुविद्यान्तराश्रयत्वात् तक्षशास्त्रे गार्ग्यागस्त्यादिभिरङ्गुलिसंख्योक्त' रथपरिमाणश्लोक मुदाहरन्ति – प्रथापि । मैसूर संस्क० पृष्ठ९६ । २. देवर्षिचरितं गार्ग्यः । चित्रशाला प्रेस पूना ।
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३. पूर्व पृष्ठ ७४ । तथा इसी ग्रन्थ का दूसरा भाग अ० २८ ।
४. इको ह्रस्वोऽङयो गालवस्य । अष्टा० ६ | ३ | ६१ ॥ तृतीयादिषु भाषित- २५ पुस्कं पु ंवद् गालवस्य । अष्टा० ७ | १ |७४ | | अड गार्ग्यगालवयोः अष्टा० ७|३| && ॥ नोदात्तस्वरितोदयमगार्ग्यकाश्यपगालवानाम् । श्रष्टा ८२४५६७ ॥
५. इकां यभिर्व्यवधानंव्याडिगालवयोरिति वक्तव्यम् । दधियत्र, दध्यत्र; मधुवत्र, मध्वत्र ।