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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
पुनरुक्तानि लुप्यन्ते पदानीत्याह शाकलः । लोप इति गार्ग्यस्य काण्वस्यार्थवशादिति ॥
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इस नियम के अनुसार गार्ग्य के पदपाठ में पुनरुक्त पदों का लोप नहीं होता । शाकल्य और माध्यन्दिन के पदपाठ में पुनरुक्त पदों का लोप हो जाता है । हमने इस नियम के अनुसार सामवेद के पदपाठ को देखा। उस में पुनरुक्त पदों का पाठ सर्वत्र मिलता है । अत: सामवेद का पदपाठ गाग्यंकृत ही है, इस में कोई सन्देह नहीं ।
गार्ग्यकृत पदपाठ के विशेष नियमों के परिज्ञान के लिये हमारा सम्पादित माध्यन्दिनसंहितायाः पदपाठ: के प्रारम्भ में पृष्ठ २४-२६ १० देखें |
श्री पं० भगवद्दत्तजी ने अपने सुप्रसिद्ध वैदिक वाङ् मय का इतिहास भाग १, खण्ड २, पृष्ठ १५४ में सामवेदीय पदपाठ के कुछ पदों की यास्कीय निर्वचनों से तुलना की है । तदनुसार उन्होंने नैरुक्त और पदकार दोनों के एक होने की सम्भावना प्रदर्शित की है । हमने १५ भी वैदिक यन्त्रालय अजमेर से सं० २००६ में प्रकाशित सामवेद के षष्ठ संस्करण का संशोधन करते समय सामवेदीय पदपाठ की अन्य पदपाठों और यास्कीय निर्वचनों के साथ विशेषरूप से तुलना की । उस से हम भी इसी परिणाम पर पहुंचे कि सामवेदीय पदकार और नैरुक्त गाग्य एक है |
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३. शालाक्यतन्त्र - सुश्रुत के टीकाकार डल्हण के मतानुसार गार्ग्य धन्वन्तरि का शिष्य है ।' उसने शालाक्य तन्त्र की रचना की थी । सम्भवतः वैद्य गार्ग्य और वैयाकरण गार्ग्य दोनों एक व्यक्ति हैं, यह हम पूर्व लिख चुके हैं। एक गार्ग्य चरक सूत्रस्थान १।१० में भी स्मृत है।
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४.
भू-वर्णन - गार्ग्य ने भूवर्णन विषयक कोई ग्रन्थ लिखा था, उसी के अनुसार वायुपुराण ३४१६३ में 'मेरुकणिका - वर्णन प्रकरण में उसे 'ऊर्ध्ववेणीकृत' दर्शाया है।
५. तक्ष- शास्त्र - आपस्तम्ब ने अपने शुल्बसूत्र में एक श्लोक उद्किया है। टीकाकार करविन्दाधिप के मत में वह श्लोक गार्ग्य
धृत
१. द्र० पूर्व पृष्ठ १६२ टि० ४ ॥