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________________ ५ पाणिनीय अष्टाध्यायी में स्मृत प्राचार्य १६३ गार्य और गालव का साथ-साथ निर्देश मिलता है। क्या इस साहचर्य से वैद्य गार्ग्य गालव और वैयाकरण गाये गालव एक ह सकते है ? यदि इन की एकता प्रमाणान्तर से पुष्ट हो जाय तो गार्ग्य गालव का काल विक्रम से लगभग ५५०० वर्ष पूर्व होगा । __ गार्य का व्याकरण गार्य के व्याकरण का कोई सूत्र प्राचीन ग्रन्थों में उपलब्ध नहीं होता । अष्टाध्यायी और प्रातिशाख्य में गाय के जो मत उदधत हैं उनसे विदित होता है कि गार्ग्य का व्याकरण सर्वाङ्गपूर्ण था। यदि सामवेद का पदकार ही व्याकरणप्रवक्ता हो तो मानना पड़ेगा कि गार्य का व्याकरण कुछ भिन्न प्रकार का था । सामपदपाठ में मित्र १० पुत्र' आदि अनेक पदों में अवग्रह करके अवान्तर दो-दो पद दर्शाए हैं, जो पाणिनीय व्याकरणानुसार (धातु प्रत्यय के संयोग से) एक ही पद हैं। सम्भव है शाकटायन के सदश गार्य ने भी एक पद को अनेक धातुओं से कल्पना की हो । गार्ग्य और शाकटायन का विरोध निरुक्त की दुर्गवृत्ति १।१३ में उपस्थिापित किया है। अन्य ग्रन्थ . प्राचीन वाङमय में गार्यविरचित निम्न ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है १. निरुक्त-यास्क ने अपने निरुक्त में तीन स्थान पर गार्य का मत उद्धृत किया है। बृहद्देवता १।२६ का मत भी निरुक्तशास्त्र- २० विषयक है। गाय के निरुक्त के विषय में श्री पं० भगवद्दत्तजी विरचित वैदिक वाङमय का इतिहास भाग १ खण्ड २ (संहितारों के भाष्यकार) पृष्ठ १६८ देखें। २. सामवेद का पदपाठ-सामवेद का पदपाठ गार्यकृत माना जाता है। निरुक्त के टीकाकार दुर्ग और स्कन्द का भो यही मत २५ है।" वाजसनेय प्रातिशाख्य ४।१७७ के उव्वट-भाष्य में गार्यकृत पदपाठ विषयक एक प्राचीन नियम उद्धृत है '. १. मित्रम् पृष्ठ १, मन्त्र ५। पुत् त्रस्य पृष्ठ १८८, मन्त्र २। २. पूर्व पृष्ठ १६१ टि० ६। ३. पूर्व पृष्ठ १६२ टि. २। ४. पूव पृष्ठ १६२ टि०१।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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