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________________ १ १६२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास जाता है।' बृहद्देवता १।२६ में यास्क और रथीतर के साथ गाग्य का मत उद्धृत है । ऋक्प्रातिशाख्य और वाजसनेय प्रातिशाख्य में गाग्य के अनेक मतों का निर्देश है। चरक सूत्रस्थान १।१० में गाये का उल्लख है । नरुक्त गार्य और सामवेद का पदकार एक ही व्यक्ति हैं, यह हम अनुपद लिखेंगे। बृहद्देवता १।२६ में निर्दिष्ट गार्य निश्चित ही नैरुक्त गार्य है । प्रातिशाख्यों में उद्धृत मत वैयाकरण गार्ग्य के हैं, यह उन मतों के अवलोकन से निश्चित हो जाता है। यद्यपि नरुक्त गार्ग्य और वैयाकरण गार्य को एकता में निश्चायक प्रमाण उपलब्ध नहीं, तथापि हमारा विचार है दोनों एक ही हैं। १० एक दप्त बालाकि गार्य शतपथ १४।५।१।१ में उद्घत है। हरि वंश पृष्ठ ५७ के अनुसार शेशिरायण गार्य त्रिगर्तों का पुरोहित था। प्रश्नोपनिषद् ४।१ में सौर्यायणि गार्य का उल्लेख मिलता है । ये निश्चय ही विभिन्न व्यक्ति हैं । यह इनके साथ प्रयुक्त विशेषणों से स्पष्ट है। काल अष्टाध्यायी में गार्ग्य का उल्लेख होने से यह निश्चय ही पाणिनि से प्राचीन है। गाग्य का मत यास्कीय निरुक्त में उद्धृत है। यदि नैरुक्त और वैयाकरण दोनों गार्ग्य एक ही हों तो यह यास्क से भी प्राचीन होगा । यास्क का काल भारतयुद्ध के समीप है । अतः गार्य विक्रम से लगभग ३१०० वर्ष प्राचीन है। सुश्रु त के टीकाकार डल्हण ने गार्य को धन्वन्तरि का शिष्य लिखा है, और उसके साथ गालव का निर्देश किया है। पाणिनीय व्याकरण में भी दो स्थानों पर णीति गार्यो वैयाकरणानां चैके । निरु० २।१२॥ अन्यत्र निरुक्त ११३॥१३॥३१॥ १. वहुवृचानां मेहना इत्येकं पदम् छन्दोगानां त्रीण्येतानि पदानि म+इह २५ +नास्ति । तदुभयं पश्यता भाष्यकारेणोभयोः शाकल्यगार्ययोरभिप्रायावत्रान विहितौ । दुर्गवृत्ति ४।४॥ मेहना एकमिति शाकल्यः, त्रीणीति गार्ग्यः । स्कन्दटीका ४॥३॥ २. चतुर्य इति तत्राहुर्यास्कगार्ग्यरथीतराः । आशिषोऽथार्थवरूप्याद काचः कर्मण एव च। ३. देखो पूर्व पृष्ठ १६१ की टि० ४,५ । ४. प्रभृतिग्रहणान्निमिकाङ्कायनगा→गालवाः ॥१॥३॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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