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________________ १६० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास अन्य ग्रन्थ १-कल्प- वात्तिककार कात्यायन के मतानुसार अष्टाध्यायी ४।३।१०३ में किसी काश्यप कल्प का उल्लेख है।' २. छन्दःशास्त्र-प्राचार्य पिङ्गल ने अपने छन्दःशास्त्र ७ । ६ में काश्यप का एक मत उद्धृत किया है। इस से विदित होता है कि काश्यप ने किसी छन्दःशास्त्र का प्रवचन किया था । फलमण्डी (भटिण्डा-पंजाब) के वैद्य श्री अमरनाथजी ने १९।५।६२ के पत्र में लिखा है कि काश्यप का छन्दःसूत्र उन के मित्र सरदार नन्दसिंहजी के पास है । बहत प्रयत्न करने पर भी उन्होंने दिखाना स्वीकार नहीं १० किया। विद्या के क्षेत्र में ऐसी संकुचित वृत्ति ग्रन्थों के नाश में प्रमुख कारण होती है। ३. आयुर्वेद संहिता-संवत् १९६५ में आयुर्वेद की काश्यप संहिता प्रकाशित हुई है । इस नष्टप्राय: कौमारभृत्य-तन्त्र के उद्धार का श्रेय नेपाल के राजगुरु पं० हेमराज शर्मा को है । उन्होंने महापरिश्रम करके एक मात्र त्रुटित ताडपत्रलिखित ग्रन्थ के आधार पर इस का सम्पादन किया है। ग्रन्थ की अन्तरङ्ग परीक्षा से प्रतीत होता है कि यह चरक सुश्रुत के समान प्राचीन आर्ष ग्रन्थ है । ४. शिल्प शास्त्र-कश्यप प्रोक्त शिल्प शास्त्र आनन्दाश्रम पूना से सन् १९२६ में प्रकाशित हो चुका है । ५. अलंकार शास्त्र-काश्यप के अलङ्कार शास्त्र का निर्देश भो अनेक ग्रन्थों में उपलब्ध होता है। ६. पुराण-चान्द्रवृत्ति ३।३।७१ तथा सरस्वतीकण्ठाभरण ४ । ३।२२६ की टोका में किसी काश्यपोय पुराण का उल्लेख मिलता है। वायुपुराण ६११५६ के अनुसार वायुपुराण के प्रवक्ता का नाम १५ २० २५ १. पूर्व पृष्ठ १५६ टि० १, ३,। २. सिंहोन्नता काश्यपस्य ३. पूर्वेषां काश्यपवररुचिप्रभृतीनामाचार्याणां लक्षणशात्राणि संहृत्य पर्यालोच्य.....। काव्यादर्श, हृदयङ्गमा टीका। काव्यादर्श की श्रुतपाल को टीका में भी निर्देश मिलता है । 5.-काव्यप्रकाश हरिदत्त एकादशतीर्थ कृत हिन्दी टीका का प्रारम्भ। ४. कल्पंचेति किम ? काश्यपीया पुराणसंहिता । ३
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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