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पाणिनीय अष्टाध्यायी में स्मृत प्राचाय
काल
पाणिनीय शब्दानुशासन में काश्यप का उल्लेख होने से इतना स्पष्ट है कि यह उससे पूर्ववर्ती है । वार्तिककार कात्यायन के मतानुसार अष्टाध्यायी ४ | ३ | १०३ में काश्यप कल्प का निर्देश है । " पाणिनि ने व्याकरण और कल्पप्रवक्ता का निर्देश करते हुए किसी ५ विशेषण का प्रयोग नहीं किया, इस से प्रतीत होता कि वैयाकरण
कल्पकार दोनों एक हैं। यदि यह ठीक हो तो काश्यप का काल भारत युद्ध के लगभग मानना होगा, क्योंकि प्रायः शाखाप्रवक्ता ऋषियों ने ही कल्पसूत्रों का प्रवचन किया था, यह हम वात्स्यायनभाष्य के प्रमाण से पूर्व लिख आये हैं । 3
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काश्यप व्याकरण
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काश्यप व्याकरण का कोई सूत्र उपलब्ध नहीं हुआ । इस के मत का उल्लेख भी केवल तीन स्थानों पर उपलब्ध होता है । शुक्ल यजु:प्रातिशाख्य के अन्त में निपातों को काश्यप कहा है । हम इस के व्याकरण के विषय में इस से अधिक कुछ नहीं जानते ।
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१. काश्यपकौशिकाम्यामृषिभ्यां णिनिः ।
२. काश्यपकौशिकग्रहणं च कल्पे नियमार्थम् । महाभाष्य ४ |२|६६ ॥ |
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हम इसी प्रकरण में श्रागे (पृष्ठ १६१ ) लिखेंगे कि न्यायवार्त्तिककार उद्योतकर कणादसूत्रों को काश्यपीय सूत्र के नाम से उद्धृत करता है । महामुनि कणाद का सम्बन्ध माहेश्वर - सम्प्रदाय के साथ है, यह प्रशस्तपाद-भाष्य के अन्त्य श्लोक से विदित होता है ।" यदि कणाद और व्याकरण प्रवक्ता काश्यप की एकता कथंचित् प्रमाणा- २० तर से परिपुष्ट हो जाये तो मानना होगा कि काश्यप व्याकरण का सम्बन्ध वैयाकरणों के माहेश्वर सम्प्रदाय के साथ है ।
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३. पूर्व पृष्ठ २१ - २४ ।
४. निपातः काश्यपः स्मृतः प्र० ८ सूत्र ५१ के श्रागे । मद्रास संस्करण के
• संस्कर्ता ने टीकाग्रन्थ के अन्तर्गत छापा है ।
५. योगाचारविभूत्या यस्तोषयित्वा महेश्रम् ।
चक्रे वैशेषिकं शास्त्रं तस्मै कणभुजे नमः ॥
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