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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
हैं । यह मेहरचन्द लक्ष्मणदास भूतपूर्व लाहौर द्वारा प्रकाशित वैदिक • स्टडीज़ पत्रिका में छप चुकी है। इसका सम्पादन डाक्टर रघुवीरजी
एम०ए० ने किया है । पाणिनीय और चान्द्र शिक्षा के साथ इस शिक्षा में पाणिनीय शिक्षा के समान ही आठ प्रकरण हैं। मैंने भी प्रापिशल-शिक्षा का एक सुन्दर संस्करण प्रकाशित किया है। उस में आपिशलशिक्षा के सूत्र जिन-जिन ग्रन्थों में उद्धृत हैं। उनका निर्देश नीचे टिप्पणी में कर दिया है।
५. कोश-यह अप्राप्य है। भानुजी दीक्षित के उपरिनिर्दिष्ट आठवें उद्धरण से स्पष्ट है कि आपिशलि ने कोई कोश भी रचा था । संख्या ७ और ६ का उद्धरण भी कोश से ही लिया गया है ।
६. अक्षरतन्त्र-इस ग्रन्थ में सामगान सम्बन्धी स्तोभों का वर्णन है। इसका प्रकाशन पं० सत्यव्रत सामश्रमी ने कलकत्ता से किया था।'
७. साम-प्रातिशाख्य-धातुवृत्ति (मैसूर संस्करण) के सम्पादक महादेव शास्त्री ने सामप्रातिशाख्य को प्रापिशलि-विरचित माना है।' १५ पर यह चिन्त्य है । द्र०-सं० व्या० शास्त्र का इतिहास, भाग २,
अध्याय २८, सामप्रातिशाख्य प्रकरण ।
२-काश्यप (३००० वि० पूर्व) पाणिनि ने अष्टाध्यायी में काश्यप का मत दो स्थानोंपर उद्धृत २० किया है। वाजसनेय प्रातिशाख्य ४.५ में शाकटायन के साथ काश्यप
का उल्लेख मिलता है । अतः अष्टाध्यायी और प्रातिशाख्य में उल्लिखित काश्यप एक व्यक्ति है, इस में कोई सन्देह नहीं ।
परिचय काश्यप शब्द गोत्रप्रत्ययान्त है । तदनुसार इस के मूल पुरुष का २५ नाम कश्यप है।
१. द्र०-६० व्या० शास्त्र का इतिहास, अध्याय २८ । २. धातुवृत्ति की भूमिका पृष्ठ ३।
३. तृषिमृषिकृषः काश्यपस्य । अष्टा० ११२।२५।। नोदात्तस्वरितोदयमगार्य काश्यपगालवानाम् । अष्टा० ८।४।६७॥ ४. लोपं काश्यपशाकटायनी ।