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________________ पाणिनोय अष्टाध्यायो में स्मृत प्राचार्य १५७ पदमञ्जरी आदि कई ग्रन्थों में मिलते हैं । इसका विशेष वर्णन धातुपाठ के प्रकरण में किया है।' २. गणपाठ-इसका उल्लेख भर्तृहरि ने महाभाष्यदीपिका में किया है। इसका विशेष वर्णन गणपाठ के प्रकरण में देखें ।' ३. उणादिसूत्र--हमारा विचार है कि पञ्चपादो उणादिसूत्र ५ आपिशलि विरचित हैं। इस विषय पर उणादिप्रकरण में विस्तार से लिखा है। ४. शिक्षा--आपिशलशिक्षा का उल्लेख पाणिनीय शिक्षा में साक्षात् मिलता है। तैत्तिरीय प्रातिशाख्य की वैदिकाभरण टीका में आपिशलि का एक सूत्र उद्धृत है।' राजशेखरप्रणीत काव्यमीमांसा १० और वृषभदेवविरचित वाक्यपदीय की टीका में भी इसका निर्देश है। इसके अष्टम प्रकरण के २३ सूत्रों का एक लम्बा उद्धरण हेमचन्द्र ने अपने हैम शब्दानुशासन की स्वोपज्ञ बृहद्वृत्ति में दिया है। इस शिक्षा के दो हस्तलेख अडियार (मद्रास) के पुस्तकालय में १. द्र०-भाग २, अध्याय २०, आपिशल धातुपाठ ।। २. इह त्यादादीन्यापिशलैः किमादीन्यस्मत्पर्यन्यानि पूर्वापराघरेति ....। पृष्ठ २८७, हमारा हस्तलेख । तुलना करो --- 'त्यदादीनि पठित्वा गणे कैश्चितपूर्वादीनि पठितानि' । कयट, भाष्यप्रदीप १११।३३।। ३. द्र०-भाग २, अध्याय २३ । ४. द्र०-भाग २, अध्याय २४, 'प्रापिशल उणादिपाठ' । ५. स एवमापिशले: पञ्चदशभेदाख्या वर्णधर्मा भवन्ति । पाणिनीयशिक्षा वृद्ध-पाठ (हमारा संस्करण)सूत्र ८।२५ । स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा उपलब्ध कोश में ८ वां प्रकरण लगभग सारा ही त्रुटित था । ६. 'शेषाः स्थानकरणाः' इत्यपिशलिशिक्षावचनात । ते० प्रा० २ । ४६, . पृष्ठ ६०। ७. शिक्षा प्रापिशलीयादिका। काव्यमीमांसा पृष्ठ ३ । २५ ८. तथेत्यापिशलीयशिक्षादर्शनम् । वाक्यपदीय वषभदेव टीका भाग १, पृष्ठ १०५ (लाहौर सं०) वृषभदेव जिसे प्रापिशलि सूत्र कहता है वह मुद्रित ग्रन्थ में कुछ भेद से मिलता है । सम्भव है भर्तृहरि ने उसका अर्थतः अनुवाद किया हो। ६. तथा चापिशलिः शिक्षामधीते-'नाभिप्रदेशात्..... बाह्यः प्रत्यत्न ३० इति' पृष्ठ ६, १०१ २०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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