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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
हैं । यह समानता न केवल सूत्ररचना में है, अपितु अनेक संज्ञा, प्रत्यय
और प्रत्याहार भी परस्पर सदृश हैं। ___ संज्ञाएं-उपरिनिर्दिष्ट सूत्रों में द्विवचन, विभाषा, गुण और सार्वधातुका, संज्ञाओं का उल्लेख है। पाणिनीय व्याकरण में भी ये ही संज्ञाएं हैं । केवल सार्वधातुका टाबन्त के स्थान में पाणिनि ने सार्वधातुक अकारान्त संज्ञा पढ़ी है।
प्रत्यय-पूर्व उद्धृत सूत्रों में टाप. ठन और शप् प्रत्यय पढ़े हैं। ये ही प्रत्यय पाणिनीय व्याकरण में भी हैं ।
प्रत्याहार-सृष्टिधर ने उपरिनिर्दिष्ट आपिशलि का जो डेढ़ १० श्लोक उद्धृत किया है। उसके 'वहव्यवधां न भष' चरण में भष
प्रत्याहार का निर्देश मिलता है । पाणिनि ने भी यही प्रत्याहार बनाया है।
इन के अतिरिक्त प्रापिशलि के धातुपाठ और गणपाठ के जो उद्धरण उपलब्ध हुए हैं वे भी पाणिनोय धातुपाठ और गणपाठ से १५ बहत समानता रखते हैं। प्रापिशलि के व्याकरण में भी पाणिनीय
व्याकरण के सदृश पाठ ही अध्याय थे, यह हम पूर्व लिख चुके हैं।' इतना ही नहीं, प्रापिशलशिक्षा और पाणिनीयशिक्षा के सूत्र परस्पर बहत सदृश हैं, दोनों का प्रकरणविच्छेद भी सर्वथा समान है। इस
अत्यन्त सादृश्य से प्रतीत होता है कि पाणिनीय व्याकरण का प्रधान २० उपजीव्य आपिशल व्याकरण है। पदमञ्जरीकार हरदत्त तो इस बात
को मुक्तकण्ठ से स्वीकार करता है । वह लिखता है___ कथं पुनरिदमाचार्येण पाणिनिनावगतमेते साधव इति ? प्रापिशलेन पूर्वव्याकरणेन ।
पाणिनिरपि स्वकाले शब्दान् प्रत्यक्षयन्नापिशलाविना पूर्वस्मि२५ न्नपि काले सत्तामनुसन्धत्ते, एवमापिलिरपि।'
अन्य ग्रन्थ १. धातुपाठ-इसके उद्धरण महाभाष्य, काशिका, न्यास और १. देखो पूर्व पृष्ठ १५० ।
२. पदमञ्जरी (अथ शब्दानुशासनम् ) भाग १, पृष्ठ ६ । ३० ३. पदमञ्जरी (अथ शब्दानुशासनम् ) भाग १, पृष्ठ ७ ।