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________________ १४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास व्यवस्था की । संवत् २००३ के अन्त में, जब सम्पूर्ण पञ्जाब में साम्प्रदायिक गड़बड़ प्रारम्भ हो चुकी थी, इसका मुद्रण आरम्भ हुआ । साम्प्रदायिक उपद्रवों के कारण अनेक विघ्न होते हुए भी श्राषाढ़ संवत् २००४ तक इस ग्रन्थ के १६ फार्म अर्थात् १५२ पृष्ठ छप चुके थे । श्रावण संवत् २००४ में भारत विभाजन के कारण लाहौर के पाकिस्तान में चले जाने से इस ग्रन्थ का मुद्रित भाग वहीं नष्ट हो गया । उसी समय मैं भी लाहौर से पुनः अजमेर आ गया । उक्त देशविभाजन से श्री माननीय पण्डितजी की समस्त सम्पत्ति, जो डेढ़ लाख रुपये से भी ऊपर की थी, वहीं नष्ट हो गयी । इतना होने पर भी आप किञ्चिन्मात्र हतोत्साह नहीं हुए, और इस ग्रन्थ के पुनर्मुद्रण के लिये बराबर प्रयत्न करते रहे । अन्त में श्राप और आपके मित्रों के प्रयत्न से फाल्गुन संवत् २००५ में इस ग्रन्थ का मुद्रण पुनः प्रारम्भ हुआ । मैंने इस काल में पूर्वमुद्रित अंश का, जिसकी एक कापी मेरे पास बच गई थी, और शेष हस्तलिखित प्रेस कापी का पुनः परिष्कार किया । इस नये परिष्कार से इस ग्रन्थ का स्वरूप अत्यन्त श्रेष्ठ बना, और ग्रन्थ भी पूर्वापेक्षया ड्योढ़ा हो गया । इस प्रकार अनिर्वचनीय विघ्न-बाधाओं के होने पर भी श्री माननीय पण्डितजी के निरन्तर सहयोग और महान् प्रयत्न से यह प्रथम भाग छपकर सज्जित हुआ है । इसके लिये मैं आपका अत्यन्त कृतज्ञ हूं, अन्यथा इस ग्रन्थ का मुद्रण होना सर्वथा असम्भव था । इस ग्रन्थ का दूसरा भाग भी यथासम्भव शीघ्र प्रकाशित होगा', जिसमें शेष १३ अध्याय होंगे । स्वल्प त्रुटि विद्या की दृष्टि से अजमेर एक अत्यन्त पिछड़ा हुआ नगर है । यहां कोई ऐसा पुस्तकालय नहीं, जिसके साहाय्य से कोई व्यक्ति अन्वेषण-कार्य कर सके । इसलिये इस ग्रन्थ के मुद्रणकाल में मुझे अधिकतर अपनी संगृहीत टिप्पणियों पर ही अवलम्बित रहना पड़ा मूल ग्रन्थों को देखकर उनके पाठों की शुद्धाशुद्धता का निर्णय न कर सका । अतः सम्भव है कुछ स्थलों पर पाठ तथा पते आदि के निर्देश १. यह भाग भी सं० २०१६ में प्रकाशित हो चुका है ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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