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________________ सस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ६. शताच्च ठन्यतावग्रन्थे ।' ७. शब्विकरणे गुणः। ८. करोतेश्च । ६. मिदेश्च। १०. तुरुस्तुशम्यमः सार्वधातुकापु च्छन्दसि ।' ११. अमङणनम् (?) (क) 'तदहम्' सूत्र का अभाव काशकृत्स्न व्याकरण के प्रकरण में वाक्यपदीय तथा उसके टीकाकार हेलाराज का जो वचन उद्धृत किया है उससे विदित होता १. महाभाष्य-प्रदीप ॥१॥२१॥ यहां कैयट ने जितना अंश अष्टाध्यायी से भिन्न था, उतने ही का निर्देश किया है। पं० गुरुपद हालदार ने व्याकरण दर्शनेर इतिहास के प्राक्कथन पृष्ठ ३२ पर प्रापिशल और काशकृत्स्न के मत से याज्ञवल्क्य स्मृति (२।२०२) का 'शतकं शतम्' प्रयोग उद्धृत किया है । वह हमें नहीं मिला। २. धातुवृत्ति पृष्ठ ३५६, ३५७ । प्रापिशलिस्तू 'शब्विकरणे गुणः' इत्यभिधाय 'करोते: मिदेश्च' इत्युक्तवान । १५ तन्त्रप्रदीप ७३॥८६॥ भारतकौमुदी भाग २, पृष्ठ ८६५ में उद्धृत । तुलना करो—अनि च विकरणे, करोतेः, मिदे. । कातन्त्र ३७३-५ । ३. धातुवृत्ति पृष्ठ ३५६, ३५७ । तन्त्रप्रदीप ७।३।८६, पूर्वोद्धृत उद्धरण । कातन्त्र ३७।४ पूर्वोद्धरण। ४. धातुवृत्ति पृष्ठ ३५६, ३५७ । तन्त्रप्रदीप ७।३।८६, पूर्वोद्धरण । कातन्त्र ३।७।५ पूर्वोद्धरण । ५. टाबन्तं संज्ञात्वेन विनियुक्तम् । पदमञ्जरी भाग २, पृष्ठ ८३८ । २० तुलना करो-'अथवा आर्धधातुकासु इति वक्ष्यामि । कासु आर्धधातुकासु ? उक्तिष युक्तिषु, रूढिष, प्रतीतिषु, श्रतिषु, संज्ञासु ।' महाभाष्य २४१३५॥ ६. काशिका ७।३।६५॥ धातुवृत्ति पृष्ठ २४१ । छान्दसोऽयमित्यापिशलिः । घातुप्रदीप पृष्ठ ८० । ६. पञ्चपादी उणादि प्रापिशलि-प्रोक्त है यह हम द्वितीय भाग में उणादि के प्रकरण में लिखेंगे। द्र०-उणादि के 'नमन्ताड्डः, (१११०७) सूत्र में अम् २५ प्रत्याहार । प्रापिशल-शिक्षा के 'अमङणनाः स्वस्थाना नासिकास्थानाश्च' (१।१९) सूत्र में अमङणन आनुपूर्वी विशेष का सबन्ध आपिशल व्याकरण के प्रत्याहार सूत्र से प्रतीत होता है । पाणिनीयशिक्षा के 'अणनमाः स्वस्थाननासिकास्थानाः' (वृद्धपाठ १२२१; लघुपाठ १।२०) सूत्र में वर्णानुक्रम से पाठ है। ८. अष्टा० ॥१११७॥ ६. देखो पूर्व पृष्ठ १२३ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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