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। संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि प्रापिलि का काल विक्रम से न्यूनातिन्यून ३००० वर्ष पूर्व अवश्य है।
आपिशल व्याकरण का परिमाण जैन आचार्य पाल्यकोति अपने शाकटायन व्याकरण की अमोघा वृत्ति २।४।१८२ में उदाहरण देता है-अष्टका प्रापिशलपाणिनीयाः । यह उदाहरण शाकटायन व्याकरण की यक्षवर्मकृत चिन्तामणिवृत्ति २१४११८२ में भी उपलब्ध होता है। इससे विदित होता है कि आपिशल व्याकरण में आठ अध्याय थे । प्रापिशलि विरचित शिक्षा ग्रन्थ में भी पाठ ही प्रकरण हैं।
आपिशल व्याकरण की विशेषता ___ काशिका ४।३।११५ में उदाहरण है-काशकृत्स्नं गुरुलाघवम्, प्रापिशलं पुष्करणम् । सरस्वतीकण्ठाभरण ४।३।२४६ की हृदयहारिणी टीका में 'काशकृत्स्नं गुरुलाघवम्, प्रापिशलमान्तःकरणम्"
पाठ है । वामन ने ६।२।१४ की वृत्ति में 'प्रापिशल्युपशं गुरुलाघवम्' १५ उदाहरण दिया है । इन में कौन सा पाठ शुद्ध है यह अभी विचार
णीय है । अतः सन्दिग्ध अवस्था में नहीं कह सकते कि आपिशल व्याकरण की अपनी क्या विशेषता थी।
__ आपिशल व्याकरण का प्रचार महाभाष्य ४।१।१४ से विदित होता है कि कात्यायन और १. पतञ्जलि के काल में प्रापिशल व्याकरण का महान् प्रचार था । उस काल में कन्याएं भी आपिशल व्याकरण का अध्ययन करती थीं ।'
आपिशल व्याकरण का स्वरूप पाणिनीय व्याकरण से प्राचीन व्याकरणों में केवल अपिशल व्याकरण ही ऐसा है जिसके सब से अधिक सूत्र उपलब्ध होते हैं और
१. निरुक्त १।१३ के 'एते: कारितं च यकारादि चान्तकरणमस्ते: शुद्धं च सकारादि च' पाठ में 'अन्तकरण' पद प्रयुक्त है। स्कन्दस्वामी ने 'अन्तकरण का अर्थ 'प्रत्यय' किया है । क्या सरस्वतीकण्ठाभरण को टीका का पाठ अन्तकरण हो सकता है। २. आपिशलमधीते ब्राह्मणी प्रापिशला ब्राह्मणी ।
३. यह स्थिति इस ग्रन्थ के प्रथम संस्करण तक थी। उस के पश्चात ३० काशकृत्स्न धातुपाठ की चन्नवीर कवि कृत कन्नड टीका प्रकाश में आई । उस
में काशकृत्स्न व्याकरण के १३५ सूत्र उपलब्ध हो गए। द्र०-पृष्ठ ११६ ।