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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
नुसार प्रापिशलि की किसी स्वसा का नाम 'पापिशल्या' होगा। अभिनव शाकटायन १।३।४ की चिन्तामणि टीका में भी 'प्रापिशल्या'. का निर्देश मिलता है। इसी प्रकार अन्य व्याकरणों में भी इस प्रकरण में प्रापिशल्या स्मृत हैं।
गोत्र-पूर्व पृष्ठ ११६ पर बौधायन प्रवराध्याय का जो वचन उद्धृत किया है तदनुसार आपिशलि भृगुवंश का है ।
प्रापिलि शाला-प्रापिशलि पद छात्र्यादि गण' में पढ़ा है । तदनुसार शाला उत्तरपद होने पर 'आपिशलिशाला में प्रापिशलि पद
को आधुदात्त होता है। इससे व्यक्त होता है कि पाणिनि के समय १० में आपिशलि की शाला देश-देशान्तर में अत्यन्त प्रसिद्ध थी।
शाला शब्द का अर्थ-यद्यपि शाला शब्द का मुख्यार्थ गह है, तथापि 'पदेषु पदेकदेशाः प्रयुज्यन्ते न्याय के अनुसार यहां 'शाला' शब्द पाठशाला के लिये प्रयुक्त हुआ है। महाराष्ट्र, गुजरात, पञ्जाब
आदि अनेक प्रान्तों में पाठशाला के लिये केवल शाला शब्द का १५ व्यवहार होता है। पुराण पञ्चलक्षण में रेमकशाला का वर्णन है, इस
में पैप्पलाद आदि ने विद्याध्ययन किया था । मुण्डक उपनिषद् में गृहपति शौनक के लिए महाशाल शब्द का व्यवहार उपलब्ध होता हैं । वहां शाला का अर्थ निश्चित ही पाठशाला है । अतः प्रापिशलि
शाला का अर्थ निश्चित ही प्रापिशलि का विद्यालय है। २० देश-आपिशलि प्राचार्य किस देश का था यह किसी प्रमाण से
नहीं जाना जाता है । तथापि उत्तरदेशीय पाणिनि वाल्मीकि के साथ आपिशलि का निर्देश होने से यह उत्तर भारतीय है, इतना निश्चित
१. गणपाठ ६॥२॥८६॥ २. छात्र्यादय: शालायाम् (अष्टा० ६।२।८६) सूत्र से।
३. तुलना करो—पदेषु पदैकदेशान्-देवदत्तो दत्तः सत्यभामा भामेति । महाभाष्य १११॥४॥
४. अनेक व्याख्यातानों ने 'महाशाल' का अर्थ 'बड़ा घर वाला' किया है। वह चिन्त्य है। शौनक गृहपति है। गृहपति वह प्राचार्य कहाता है। जो
दश सहस्र छात्रों के भोजन छादन एवं अध्यापन की व्यवस्था करे। अतः उस ३० के लिये प्रयुक्त 'महाशाल' का अर्थ आधुनिक प्रयोगानुसार 'विश्व-विद्यालय' के
अतिरिक्त और कुछ हो ही नहीं सकता।