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चौथा अध्याय पाणिनीय अष्टाध्यायी में स्मृत आचार्य
(४०००-३००० वि० पू०) पाणिनि ने अपने अष्टाध्यायी में दश प्राचीन व्याकरणप्रवक्ता ५ प्राचार्यों का उल्लेख किया है। उनके पौर्वापर्य का यथार्थ निश्चय न होने से हम उनका वर्णन वर्णानुक्रम से करेंगे।
आपिशलि (३००० वि० पू०) आपिशलि आचार्य का उल्लेख पाणिनोय अष्टाध्यायी के एक सूत्र में उपलब्ध होता है।' महाभाष्य ४।२।४५ में प्रापिशलि का मत १० प्रमाणरूप में उद्धृत किया है।' वामन, न्यासकार जिनेन्द्रबुद्धि, कैयट
तथा मत्रयरक्षित आदि प्राचीन ग्रन्थकारों ने प्रापिशल व्याकरण के अनेक सूत्र उद्धृत किये हैं ।' पाणिनि ने स्वीय शिक्षा के अन्तिम प्रकरण में भी आपिशलि का उल्लेख किया है।'
परिचय १५ वंश-आपिशलि शब्द तद्धितप्रत्ययान्त है। काशिका ६।२।३६ में प्रापिशलि पद की व्युत्पत्ति इस प्रकार दर्शाई है
अपिशलस्यापत्यमापिलिराचार्यः । प्रत इन्। पाल्यकीति ने रूढादिगण १।३।४ में अपिशल शब्द से इन आपिशलि मानकर, स्त्रीलिङ्ग में प्रापिशल्या का निर्देश किया है । गणरत्नमहोदधिकार वर्धमान लिखता है
प्रापिशलि-पिंशतीत्यौणादिककलप्रत्यये पिशलः, न पिशलोऽपिशलः कुलप्रधानमः तस्यापत्यम् ।
१. वा सुप्यापिशलेः । अष्टा० ६।११९२॥
२. एवं च कृत्वाऽपिशलेराचार्यस्य विधिरुपपन्नो भवति–धेनुरनजिकमुर त्पादयति ।
३. काशिका ७।३।८६।। न्यास ४।२।४५॥ कयट, महाभाष्यप्रदीप ५॥१॥ २१॥ तन्त्रप्रदीप ७३॥८६॥
४. पा० शिक्षा वृद्धपाठ प्र० ८ सूत्र २५ । ५, गणरलमहोदधि, पृष्ठ ३७ ।
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