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संस्कृतव्याकरण-शास्त्र का इतिहास
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व्याडि का एक मत उद्धृत किया है। गालव शब्दानुशासन का कर्ता है और पाणिनि ने अष्टाध्यायी में उसका चार स्थानों पर उल्लेख किया है। महाभाष्य ६।२।३६ में 'प्रापिशल पाणिनीयव्याडीयगौतमीयाः' प्रयोग मिलता हैं । इसमें प्रसिद्ध वैयाकरण आपिशलि और पाणिनि के अन्तेवासियों के साथ व्याडि के अन्तेवासियों वा निर्देश है । ऋक्प्रातिशाख्य १३।३१ में शाकल्य और गार्य के साथ व्याडि का बहुधा उल्लेख है। शाकल्य' और गाय दोनों का स्मरण पाणिनि ने अपने शब्दानुशासन में किया है। इससे स्पष्ट है कि व्याडि ने कोई शब्दानुशासन अवश्य रचा था।
परिचय और काल व्याडि का दूसरा नाम दाक्षायण है। इसे वामन ने काशिका ६।।६९ में दाक्षि के नाम से स्मरण किया है। यह दाक्षिपुत्र पाणिनि का मामा है । कई विद्वान् दाक्षायण पद से इसे पाणिनि का
ममेरा भाई मानते हैं, वह ठीक नहीं । अतः व्याडि का काल पाणिनि १५ से कुछ पूर्व अर्थात् विक्रम से लगभग २६५० वर्ष पूर्व है।
व्याडि के परिचय और काल के विषय में हम 'संग्रहकार व्याडि' नामक प्रकरण में विस्तार से लिखेंगे । अतः इस विषय में यहां हम इतना ही संकेत करते हैं।
व्याकरण २० जयादित्य ने काशिका २।४।२१ में उदाहरण दिया है-व्याड्यपज्ञं दुष्करणम् ।
न्यास में इसका पाठ 'व्याड्य पज्ञं दशहष्करणम्' है । १. इकां यभिर्व्यवधानं व्याडिगालवयोरिति वक्तव्यम् । २. अष्टा० ६।३।६१॥ ७॥११७४॥ ७३६६॥ ८।४।६७।। ३. व्याळिशाकल्यगार्याः । ४. अष्टा० १११११६॥ ६।१।१२७॥ ८॥३॥१६॥ ८।४।५१॥ ५. अष्टा० ७।३।६६।८।३।२०॥ ४६॥
६. कुमारीदाक्षाः ।.....'कुमार्यादिलाभकामा ये दाक्षादिभिः प्रोक्तानि शास्त्राण्यधीयते तच्छिष्यतां वा प्रतिपद्यन्ते त एवं क्षिप्यन्ते । यहां 'दाक्षादिभिः' ३० पाठ अशुद्ध है, 'दाक्ष्यादिभिः पाठ होना चाहिये ।