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________________ पाणिनीयाष्टक में अनुल्लिखित प्राचीन प्राचाय १४३ १५-गौतम (३००० वि० पू०) गौतम का नाम पाणिनीय तन्त्र में नहीं मिलता। महाभाष्य ६।२।३६ में प्रापिशलपाणिनीयव्याडीयगौतमीयाः' प्रयोग मिलता है। इस में स्मृत आपिशलि, पाणिनि और व्याडि ये तीन वैयाकरण हैं । अतः इन के साथ स्मृत आचार्य गौतम भी वैयाकरण प्रतीत होता है। ५ इसकी पुष्टि तैत्तिरीय प्रातिशाख्य' और मंत्रायणीय प्रातिशाख्य से होती है। उस में प्राचार्य गौतम के मत उदधृत हैं। महाभाष्य के उद्धरण से इस बात की कुछ प्रतीति नहीं होती कि गौतम पाणिनि से पूर्ववर्ती है वा उत्तरवर्ती । परन्तु तैत्तिरीय प्रातिशाख्य में प्लाक्षि कौण्डिन्य और पौष्करसादि के साथ गौतम का १० निर्देश होने से वह पाणिनि से निस्सन्देह प्राचीन है । यह वही प्राचार्य प्रतीत हाता है जिसने गौतम गृह्य, गौतम धर्मशास्त्र बनाए । वह शाखाकार था। गौतमप्रोक्त गौतमी शिक्षा इस समय उपलब्ध है। यह काशी से प्रकाशित शिक्षासंग्रह में छपी है । गौतमवंश का विस्तार–पाल्यकीत्ति ने स्वप्रोक्त व्याकरण की १५ 'अमोघा' वृत्ति १।२।१६० में एक उदाहरण दिया है-त्रिपञ्चाशद् गौतमम् । इस का काशिका २।१।१६ में दिये गये 'जन्मना-एकविशतिभारद्वाजम्' के साथ तुलना करने से व्यक्त होता है कि गौतम का वंश ५३ गोत्रावयवों में विभक्त था । १६-व्याडि (२९.०० वि० पू०) आचार्य व्याडि का निर्देश पाणिनीय सूत्रपाठ में नहीं मिलता। प्राचार्य शौनक ने ऋक्प्रातिशाख्य में व्याडि के अनेक मत उद्धृत किये हैं। भाषावृत्ति ६।१।७७ में पुरुषोत्तमदेव ने गालव के साथ १. प्रथमपूर्वो हकारश्चतुर्थ तस्य सस्थानं प्लाक्षिकौण्डिन्यगौतमपौष्कर- २५ सादीनाम् । ५॥३॥ २. मै० प्रा० ५५४०॥ द्र० मै० सं० 'वैदिक स्वाध्याय मण्डल' द्वारा . प्रकाशित का प्रस्ताव, पृष्ठ १६ । ३. ऋक्प्राति० ३।२३, २८ ॥६॥४३॥ १३॥३१,३७॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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