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________________ २० १४२ संस्कृत व्याकरण- शास्त्र का इतिहास अव उपसर्ग के प्रकार का लोप बहुल करके होता है, ऐसा शौनकि है । २५ इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि प्राचार्य शौनक ने किसी व्याकरणतन्त्र का प्रवचन किया था । शौनक पद अपत्यप्रत्ययान्त है। तदनुसार शोनकि के पिता का १० नाम शौनक है । यह ब्रह्मज्ञाननिधि गृहपति शानक का पुत्र है । शौनक का काल विक्रम से ३००० वर्ष पूर्व है, यह हम पाणिनि के प्रसङ्ग में लिखेंगे । अतः शौनक का काल भी ३००० वर्ष विक्रम पूर्व मानना युक्त है । यदि पूर्वनिर्दिष्ट सम्भावनानुसार शौनक शौनकि एक भी हों, तब भी काल में विशेष अन्तर नहीं होगा । १५ शौनक के व्याकरण पम्बन्धी मत वाजसनेय प्रातिशाख्य आदि में बहुत उद्धृत हैं ।' क्या पाणिन-पाणिनि काशकृत्स्न- काश कृत्स्नि के समान शौनक - शौनक नामों से एक व्यक्ति अभिप्रेत है ? परिचय और काल चरक सूत्रस्थान २५।१६ में शौनक का एक पाठान्तर भी शौनकि मिलता है । शौनक के चिकित्सा ग्रन्थ का निर्देश प्रष्टाङ्गहृदय कल्पस्थान ६।१५ में अघी शौनकः पुनः रूप में मिलता है । इस की सर्वाङ्गसुन्दरा टीका में लिखा है शौनकस्तु तन्त्रकृदधीते ....''/ शौनक प्रोक्त ज्योतिष ग्रन्थ अथवा उस के मतों का उल्लेख ज्योतिष ग्रन्थों में प्रायः उपलब्ध होता है । प्रद्भुतसागर पृष्ठ ३२५ में शौनक के मत में उल्काओं का पञ्चविधत्व निर्दिष्ट है । * १. पूर्व पृष्ठ ७७ द्र० । २. द्र० – निर्णयसागर मुद्रित गुटका । ३. द्रष्टव्य - शंकर बालकृष्ण कृत 'भारतीय ज्योतिष शास्त्राचा इतिहास' पृष्ठ १५६, ४५२ टि०, ४८७ (द्वि० सं०) । ४. उल्का एवं पञ्चविधि ह्येता: शौनकेन प्रदर्शिताः ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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