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संस्कृत व्याकरण- शास्त्र का इतिहास
अव उपसर्ग के प्रकार का लोप बहुल करके होता है, ऐसा शौनकि है ।
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इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि प्राचार्य शौनक ने किसी व्याकरणतन्त्र का प्रवचन किया था ।
शौनक पद अपत्यप्रत्ययान्त है। तदनुसार शोनकि के पिता का १० नाम शौनक है । यह ब्रह्मज्ञाननिधि गृहपति शानक का पुत्र है । शौनक का काल विक्रम से ३००० वर्ष पूर्व है, यह हम पाणिनि के प्रसङ्ग में लिखेंगे । अतः शौनक का काल भी ३००० वर्ष विक्रम पूर्व मानना युक्त है । यदि पूर्वनिर्दिष्ट सम्भावनानुसार शौनक शौनकि एक भी हों, तब भी काल में विशेष अन्तर नहीं होगा ।
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शौनक के व्याकरण पम्बन्धी मत वाजसनेय प्रातिशाख्य आदि में बहुत उद्धृत हैं ।' क्या पाणिन-पाणिनि काशकृत्स्न- काश कृत्स्नि के समान शौनक - शौनक नामों से एक व्यक्ति अभिप्रेत है ? परिचय और काल
चरक सूत्रस्थान २५।१६ में शौनक का एक पाठान्तर भी शौनकि मिलता है ।
शौनक के चिकित्सा ग्रन्थ का निर्देश प्रष्टाङ्गहृदय कल्पस्थान ६।१५ में अघी शौनकः पुनः रूप में मिलता है । इस की सर्वाङ्गसुन्दरा टीका में लिखा है
शौनकस्तु तन्त्रकृदधीते ....''/
शौनक प्रोक्त ज्योतिष ग्रन्थ अथवा उस के मतों का उल्लेख ज्योतिष ग्रन्थों में प्रायः उपलब्ध होता है । प्रद्भुतसागर पृष्ठ ३२५ में शौनक के मत में उल्काओं का पञ्चविधत्व निर्दिष्ट है । *
१. पूर्व पृष्ठ ७७ द्र० ।
२. द्र० – निर्णयसागर मुद्रित गुटका ।
३. द्रष्टव्य - शंकर बालकृष्ण कृत 'भारतीय ज्योतिष शास्त्राचा इतिहास'
पृष्ठ १५६, ४५२ टि०, ४८७ (द्वि० सं०) । ४. उल्का
एवं पञ्चविधि ह्येता: शौनकेन प्रदर्शिताः ।