________________
१४० ___ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास काशिका ६।२।३६ में उदाहरण देता है-प्रापिशलपाणिनीयाः, पाणिनीयरौढीयाः, रौढीयकाशकृत्स्नाः ' । इन में श्रुत आपिशालि, पाणिनि और काशकृत्स्न निस्सन्देह वैयाकरण हैं । अतः इनके साथ स्मृत रौढि प्राचार्य भी वैयाकरण होगा।
परिचय वंश-रौढि पद अपत्यप्रत्ययान्त है, तदनुसार इस के पिता का नाम रूढ है । __स्वसा-वर्धमान ने क्रौड्यादिगण में रौढि पद पढ़ा है । तदनुसार रौढि को स्वसा का नाम रौढया था। महाभाष्य ४।१७६ से भी इसकी पुष्टि होती है । पाणिनि के गणपाठ में रौढि पद उपलब्ध नहीं होता।
सम्पन्नता–पतञ्जलि ने महाभाष्य १।११७३ में 'घृतरौढीयाः उदाहरण दिया है। जयादित्य ने इसका भाव काशिका १११।७३ में
इस प्रकार व्यक्त किया है -घृतप्रधानो रौढिः घृतरौढिः तस्य छात्राः १५ घतरौढीयाः । इस प्रकार से व्यक्त होता है कि यह प्राचार्य अत्यन्त
सम्पन्न था। इस ने अपने अन्तेवासियों के लिए घृत की व्यवस्था विशेषरूप से कर रक्खी थी। इसी भाव का पोषक घतरौढीयाः काशिका ६।२।६९ में भी है। काशिकाकार के अनुसार उसका अभि
प्राय है-- जो छात्र रौढिप्रोक्त शास्त्र में श्रद्धा न रख कर केवल घृत२. भक्षण के लिये उसके शास्त्र को पढ़ते हैं, उनकी 'पूर्वपदाद्य दात्त घत
रौढीय' पद से निन्दा की जाती है।
काल
२५
रौढि पद पाणिनीय अष्टक तथा गणपाठ में उपलब्ध नहीं होता । महाभाष्य ४।१।७६ में लिखा है।।
सिद्धन्तु रौढ्यादिषूपसंख्यानात् । सिद्धमेतत्, कथं ? रौढ्यादिषुपसंख्यानात् । रौढ्यादिषूपसंख्यानं कर्तव्यम् । के पुना रौढयादयः ? ये क्रौड्यादयः । ___ इस पर कैयट लिखता है-'क्रोड्यादि के स्थान में वार्तिकपठित रौढयादि पर पूर्वाचार्यों के अनुसार है।' इसका यह अभिप्राय है कि