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________________ १३८ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास गया है । अन्यत्र भी इसे शुक्लयजुःशाखाओं का मूल कहा है।' ग्रन्थ का आन्तरिक साक्ष्य भी इस की पुष्टि करता है। पहले (संस्करण १, २ में) हमने यह सम्भावना प्रकट की थी कि मध्यन्दिन आचार्य ने शुक्लयजुः के पदपाठ का प्रवचन किया था, और उसी आधार पर इस का नाम 'माध्यन्दिनी संहिता' प्रसिद्ध हुआ। क्योंकि केवल पदपाठ के प्रवचन से भी प्राचीन संहिताएं पदकार के नाम से व्यवहृत होती हैं । यथा-शाकल्य के पदपाठ से मूल ऋग्वेद शाकल संहिता, और आत्रेय के पदपाठ के कारण प्राचीन तैत्तिरीय संहिता आत्रेयी कहाती है। इसी प्रकार मध्यन्दिन के पदपाठ के १० कारण प्राचोन यजुः संहिता माध्यन्दिनो संहिता के नाम से व्यवहृत हुई, परन्तु अब अन्य तथ्य प्रकट हुआ है। माध्यन्दिन पदपाठ शाकल्य-कृत-सं० २०२० के इस ग्रन्थ के द्वितीय संस्करण छपने के कुछ मास के पश्चात् 'केकड़ी' (राजस्थान) के मित्रवर पं० मदनमाहनजी व्यास ने हमें माध्यन्दिनी संहिता के पदपाठ १५ का एक सम्पूर्ण हस्तलेख दिया। उस का लेखन काल पूर्वार्ध (अ० २०) और उत्तरार्ध (अ० ४०) के अन्त में सं० १४७१ शक १३२६ अङ्कित ___१. तथा चेदं होलीरभाष्यम्-यजुर्वेदस्य मूलं हि भेदो माध्यन्दिनीयकः । ..."तस्मान्माध्यन्दिनीयशाखा एव पञ्चदशसु वाजसनेयशाखासु मुख्या सर्व साधारणी च । अतएव वसिष्ठेनोक्तम- माध्यन्दिनी तु या शाखा सर्वसाधारणी २० तु सा। राजकीय हस्तलेख पुस्तकालय मद्रास का सूचीपत्र भाग ३, पृष्ठ ३४२६, ग्रन्थ नं० २४०६ अनितिनाम पुस्तक का मुद्रित पाठ। द्र० मेरी 'वैदिक-सिद्धान्त-मीमांसा' ('मूल यजुर्वेद' शीर्षक लेख) पृष्ठ २४३ । वसिष्ठ का उक्त वचन शुक्लयजुःप्रातिशाख्य के परिशिष्टरूप 'प्रतिज्ञासूत्र' १३ के भाष्य में अनन्तदेव ने भी उद्धृत किया है । तथा सूत्रकार के मत में माध्यन्दिन २५ संहिता का ही मुख्यत्व माना है। २. देखो-वैदिक-सिद्धान्त-मीमांसा, 'मूल यजुर्वेद' शीर्षक लेख, पृष्ठ २४३ । ३. उख: शाखामिमां प्राह आत्रेयाय यशस्विने । तेन शाखा प्रणीतेयमात्रेयीति सोच्यते ॥ यस्याः पदकृदात्रेयो वृत्तिकारस्तु कुण्डिनः । ते० काण्डानुक्रम, २० पष्ठ ६, श्लोक २६, २७ । तै० सं० भट्टभास्करभाष्य भाग १ के अन्त में मुद्रित।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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