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________________ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास १० - शन्तनु ( ३१०० वि० पूर्व ) ५ आचार्य शन्तनु ने किसी सर्वाङ्गपूर्ण व्याकरण शास्त्र का प्रवचन किया था । सम्प्रति उपलभ्यमान फिट्-सूत्र उसी शास्त्र का एकदेश है । यह हम ने इस ग्रन्थ के 'फिट् सूत्र का प्रवक्ता श्रौर व्याख्याता' नामक सत्ताईसवें अध्याय में विस्तार से लिखा है । इसलिए शन्तनु के काल और उसके शब्दानुशासन के लिए पाठकवृन्द उक्त अध्याय का अवलोकन करें। यहां उसी विषय का पुनः प्रतिपादन करना पिष्टपेषणवत् होगा । १३४ १५ ११ - वैयाघ्रपद्य (३१०० वि० पू० ) आचार्य वैयाघ्रपद्य का नाम पाणिनीय व्याकरण में उपलब्ध नहीं होता । काशिका ७।१।६४ में लिखा है गुणं त्विगन्ते नपुंसके व्याघ्रपदां वरिष्ठः ।' इस उद्धरण से वैयाघ्रपद्य का व्याकरण- प्रवक्तृत्व विस्पष्ट है । परिचय वैयाघ्रपद्य के गोत्रप्रत्ययान्त होने से इसके पिता अथवा मूल पुरुष का नाम व्याघ्रपाद है, इतना स्पष्ट है । काल व्याघ्रपाद् का पिता - महाभारत अनुशासन पर्व ५३ | ३० के अनु२० सार व्याघ्रपाद् महर्षि वसिष्ठ का पुत्र है ।" पाणिनि ने व्याघ्रात् पद गर्गादिगण में पठा है । उस से य प्रत्यय होकर वैयाघ्रपद्य पद निष्पन्न होता है । वैयाघ्रपद्य नाम शतपथ ब्राह्मण, जैमिनि ब्राह्मण, जैमिनीय उपनिषद् ब्राह्मण, तथा १. व्याघ्रपादपत्यानां मध्ये वरिष्ठो वैयाघ्रपद्य आचार्य: । पदमञ्जरा २५ ७ ११६४, भाग २, पृष्ठ ७३६ ॥ २. व्यात्रयोन्यां ततो जाता वसिष्ठस्य महात्मनः । एकोनविंशतिः पुत्राः ख्याता व्याघ्रपदादयःः ॥ ३. अष्टा० ४।१।१०५ ।। ४. १०।६।१।७,८॥ ५. ३|७|४|१|| ४|६|१|१| इन दोनों स्थानों में 'राम कातुजातेय' के लिये वैयाघ्रपद्य' पद का प्रयोग है ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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