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पाणिनोयाष्टक में अनुल्लिखित प्राचीन प्राचार्य
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अन्य ग्रन्थ काशकृत्स्न अथवा काशकृत्स्नि ने शब्दानुशासन के अतिरिक्त उसके कतिपय स्वीय व्याकरण के खिल पाठ और मीमांसा आदि निम्न ग्रन्थों का प्रवचन किया था
१. धातुपाठ-काशकृत्स्न प्रोक्त धातुपाठ चन्नवीर कवि कृत ५ कन्नड टीका सहित संवत २००८ में प्रकाश में आ चुका है। हमने कन्नड टीका का संस्कृत रूपान्तर करके 'काशकृत्स्न-धातुव्याख्यानम्' के नाम से प्रकाशित किया है। इस के विषय में विशेष विचार इस ग्रन्थ के द्वितीय भाग में अध्याय २२ में किया है।
२. उणादि-पाठ-इस के विषय में इसी ग्रन्थ के द्वितीय भाग में १० 'उणादि-सूत्रों के प्रवक्ता और व्याख्याता' शीर्षक अध्याय २४ में देखिये।
३. परिभाषापाठ-इस के विषय में द्वितीय भाग में परिभाषापाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता' शीर्षक अध्याय २६ में देखें।
४. मीमांसा शास्त्र-पूर्व पृष्ठ ११८ पर लिख चुके हैं कि पात- १५ जल महाभाष्य और भास के यज्ञफल नाटक में काशकृत्स्न-प्रोक्त मीमांसा शास्त्र का उल्लेख मिलता है। तत्त्वरत्नाकर के लेखक भट्ट पराशर प्रभति संकर्ष काण्ड को काशकृत्स्न-प्रोक्त स्वीकार करते हैं ।
४. यज्ञ-संबंधी ग्रन्थ-बौधायन गृह्य और भट्ट भास्कर के पूर्व पृष्ठ ११६ पर उद्धृत प्रमाणों से व्यक्त होता है कि काशकृत्स्न ने यज्ञ- २० विषयक भी कोई ग्रन्थ लिखा था ।
६. वेदान्त-पूर्व पृष्ठ ११६ पर निर्दिष्ट वेदान्त १।४।२२ के उद्धरणसे यह भी संभावना होती है कि काशकृत्स्न ने किसी वेदान्त सूत्र अथवा अध्यात्म शास्त्र का प्रवचन भी किया था।
काशकृत्स्न प्रोक्त व्याकरण के साङ्गोपाङ्ग विवेचन और उसके २ ५ उपलब्ध सूत्रों के लिए हमारा 'काशकृत्स्न-व्याकरणम्' संस्कृत ग्रन्थ देखिए । इस ग्रन्थ को हम पृथक् रूप में प्रकाशित कर चुके हैं।