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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
पुल्यगस्तिभ्यामस्त्योऽस्तिश्च । धा० सूत्र ११४१०, पृष्ठ ६६ ।
प्रत्ययों का इस प्रकार समस्त और असमस्त उभयथा निर्देश तभी सम्भव हो सकता है, जब सूत्र रचना छन्दोबद्ध हो अर्थात् छन्दोऽनुरोध
से कहीं समस्त और कहीं असमस्त निर्देश करना पड़े । अन्यथा ५ लाघव के लिए समस्त निर्देश ही करना युक्त होता है ।
३. काशकृत्स्न-व्याकरण के जो सूत्र उपलब्ध हुए हैं, उनमें कतिपय स्पष्ट रूप में श्लोक अथवा श्लोकांश है । यथा-- [क] भूते भव्ये वर्तमाने भावे कर्तरि कर्मणि । प्रयोजके गुणे योग्ये धातुभ्यः स्युः क्विबादयः ॥
धा० सूत्र ११३७२, पृष्ठ ६० । [ख] गृहाः पुंसि च नाम्न्येव । धा० सूत्र ८।१४, पृष्ठ १८२ । [ग] अकर्मकेभ्यो धातुभ्यो भावे कर्मणि यङ् स्मृतः ॥
अथ णिजन्ताः , पृष्ठ २२३ ॥ काशकृत्स्न के जो सूत्र उपलब्ध हुए हैं, वे उसके तन्त्र के विविध १५ प्रकरणों के हैं, इसलिये गद्यबद्ध प्रतीयमान सूत्रों के विषय में भी श्लोकबद्ध होने की सम्भावना का निराकरण नहीं होता।
काशकृत्स्न के १४० सूत्रों की उपलब्धि-हमने इस ग्रन्थ के प्रथम संस्करण में काशकृत्स्न के चार-पांच सूत्र उद्धृत किये थे। तत्पश्चात् सं० २००८ वि० के अन्त में काशकृत्स्न-धातुपाठ कन्नडटीका-सहित प्रकाश में आया। ऐसे दुर्लभ और पाणिनि से प्राचीन आर्ष ग्रन्थ के अनुशीलन के लिए मन लालायित हो उठा। परन्तु कन्नड-भाषा का परिज्ञान न होने के कारण उससे वंचित रह गये । अन्त में हमने बहत द्रव्य व्यय करके सं० २०११ वि० में इसकी नागराक्षरों में प्रतिलिपि करवाई। इस ग्रन्थ के अनुशीलन से संस्कृत-भाषा और उसके व्याकरण के सम्बन्ध में जहां अनेक रहस्य विदित हुए, और सं० २००७ में लिखे गए इस ग्रन्थ के प्रथम अध्याय में उल्लिखित प्राचीन संस्कृतभाषा-सम्बन्धी विचारों की पुष्टि हुई, वहीं काशकृत्स्न-व्याकरण के लगभग १३५ सूत्र नये उपलब्ध हुए।'
१. इन सूत्रों और इन की व्याख्या के लिए देखिए हमारा 'काशकृत्स्न३० व्याकरणम्' ग्रन्थ।
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