________________
पाणिनीयाष्टक में अनुल्लिखित प्राचीन प्राचार्य
१३१
इनका भाव यह हैं कि सूत्रों की लघुता के लिए गद्य का आश्रय सब से पूर्व काशकृत्स्न ने लिया था । उससे पूर्व सूत्र - रचना छन्दोबद्ध होती थी ।
पूर्वलेख शुद्ध - उक्त लेख तब लिखा गया था जब काशकृत्स्नधातुपाठ प्रकाश में नहीं आया था, परन्तु काशकृत्स्न- धातुपाठ तथा ५ उसकी कन्नड-टीका में १३५ सूत्रों के प्रकाश में आ जाने से हमें पूर्व - विचार में परिवर्तन करना पड़ा। काशकृत्स्न सूत्रों की कातन्त्र-सूत्रों से तुलना करने पर ज्ञात होता है कि काशकृत्स्न-व्याकरण भी सम्भवतः श्लोकबद्ध रहा होगा ।
गुरु - लाघव का शुद्ध अर्थ - हम पहने लिख चुके हैं कि भारतीय १० इतिहास और व्याकरण के उपलब्ध तन्त्र इस बात के प्रमाण हैं कि व्याकरण- शास्त्र के प्रवचन में उत्तरोत्तर संक्षेप हुआ है । काशकृत्स्न
अपने संक्षिप्त (पूर्वापेक्षया) शास्त्र का प्रवचन करते समय शब्दों के गौरव=लोक में प्रयोग और लाघव = लोक में अप्रयोग को मुख्यता दी। दूसरे शब्दों में काशकृत्स्न ने अपने शास्त्र - प्रवचन में लोक में १५ प्रसिद्ध शब्दों को छोड़ दिया, अतः उसका शास्त्र पूर्व तन्त्रों की अपेक्षा बहुत छोटा हो गया । इसी कारण लोक में ' शब्दकलाप' नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
काशकृत्स्न- तन्त्र श्लोकबद्ध - काशकृत्स्न का व्याकरण ऋक्प्रातिशाख्य के समान पद्यबद्ध था, न कि पाणिनीय तन्त्र के समान गद्य- २० बद्ध । इसमें निम्न हेतु हैं
१. मूल कातन्त्र - व्याकरण का पर्याप्त भाग छन्दोबद्ध है | कातन्त्र काशकृत्स्न का संक्षिप्त प्रवचन है । इससे अनुमान होता है कि काशकृत्स्न तन्त्र भी श्लोकबद्ध रहा होगा ।
• काशकृत्स्न- व्याकरण के जो विकीर्ण सूत्र कन्नड टीका में उपलब्ध २५ हुए हैं, उनमें प्रत्यय-निर्देश दो प्रकार से मिलता है। सत्र में जहां एक से अधिक प्रत्ययों का निर्देश है, वहां कहीं प्रत्ययों का समास से निर्देश किया है, कहीं पृथक्-पृथक् । यथा
समस्तनिर्देश - लक्षेममन्मनाः । धा० सूत्र | १०, पृष्ठ १८८ । नाम्न उपमानादाचारे प्रायङीयौ । श्रथ णिजन्ताः, पृष्ठ २२२ । समस्त निर्देश – कशेप इपुश्च । धा० सूत्र ९ ३७०, पृष्ठ ५६ ।
-
३०