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________________ १२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास प्राकृत की पारस्परिक महती समानता दर्शाते हुए सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि वैदिक संस्कृत और प्राकृत का मूल कोई प्रागैतिहासिक प्राकृत भाषा थी । यद्यपि मैं उससे पूर्व आधुनिक भाषाविज्ञान के कई ग्रन्थ देख चुका था, तथापि, उक्त पुस्तक में सप्रमाण लेख का अवलोकन करने से मुझे भाषाविज्ञान पर विशेष विचार करने की प्रेरणा मिली । तदनुसार मैंने दो ढाई वर्ष तक निरन्तर भाषाविज्ञान का विशेष अध्ययन और मनन किया । उससे मैं इस परिणाम पर पहुंचा कि आधुनिक भाषाविज्ञान का प्रासाद अधिकतर कल्पना की भित्ति पर खड़ा किया गया है। उसके अनेक नियम, जिनके आधार पर अपभ्रंश भाषाओं के क्रमिक विकार और पारस्परिक सम्बन्ध का निश्चय किया गया है, अधूरे एकदेशी हैं। हमारा भाषा - विज्ञान पर स्वतन्त्र ग्रन्थ लिखने का विचार है ।' उसमें हम प्राघुनिक भाषाविज्ञान के स्थापित किये गये नियमों की सम्यक् आलोचना करेंगे प्रसंगवश इस ग्रन्थ में भी भाषाविज्ञान के एक महत्त्वपूर्ण नियम का अधूरापन दर्शाया है । संस्कृतभाषा विश्व की आदि भाषा है वा नहीं, इस पर इस ग्रन्थ में विचार नहीं किया । परन्तु भाषाविज्ञान के गम्भीर अध्ययन के अनन्तर हम इस परिणाम पर पहुंचे हैं कि संस्कृतभाषा में श्रादि ( चाहे उसका प्रारम्भ कभी से क्यों न माना जाय ) से आज तक यत्किचित् परिवर्तन नहीं हुआ है । आधुनिक भाषाशास्त्री संस्कृतभाषा में जो परिवर्तन दर्शाते हैं, वे सत्य नहीं हैं। हां, आपाततः सत्य प्रतीत अवश्य होते हैं, परन्तु उस प्रतीति का एक विशेष कारण है । और वह है- संस्कृतभाषा का ह्रास । संस्कृतभाषा प्रतिप्राचीन काल में बहुत विस्तृत थी । शनैः-शनैः देश काल और परिस्थितियों के परिवर्तन के कारण म्लेच्छ भाषात्रों की उत्पत्ति हुई, और उत्तरोत्तर उनकी वृद्धि के साथ-साथ संस्कृतभाषा का प्रयोगक्षेत्र सीमित होता गया । इसलिये विभिन्न देशों में प्रयुक्त होनेवाले संस्कृतभाषा के विशेष शब्द संस्कृतभाषा से लुप्त हो गये । भाषाविज्ञानवादी संस्कृतभाषा में जो परिवर्तन दर्शाते हैं, वह सारा इसी शब्दलोप वा संस्कृत 1 १. श्री पं० भगवद्दत्तजी ने इस विषय पर 'भाषा का इतिहास' नामक एक ग्रन्थ लिखा है । २. देखो पृष्ठ १२, १३ ( प्रकृत चतुर्थ सं० में पृष्ठ १५-१८) ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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