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________________ प्रथम संस्करण की भूमिका ११ हास में जो काल दर्शाया है, वह उनके अस्तित्व की उत्तर सीमा है । वे उस काल से अधिक प्राचीन तो हो सकते हैं, परन्तु अर्वाचीन नहीं हो सकते, इतना निश्चित है । पाश्चात्त्य तथा उनके अनुकरणकर्ता भारतीय ऐतिहासिकों का मत है कि भारत में आर्यों का इतिहास ईसा से २५०० वर्ष से अधिक प्राचीन नहीं है । इसकी सत्यता हमारे इस इतिहास से भले प्रकार ज्ञात हो जायगी । हमने अभी तक भारतीय प्राचीन इतिहास के सम्बन्ध में जितना विचार किया है, उसके अनुसार भारतीय आर्यों का प्राचीन क्रमबद्ध इतिहास लगभग १६००० वर्षों का निश्चित रूप से उपलब्ध होता है । उस इतिहास का प्रारम्भ वर्तमान चतुर्युगी के सत्युग से होता है । उससे पूर्व का इतिहास उपलब्ध नहीं होता । इसका एक महत्त्वपूर्ण कारण है । हमारा विचार है कि सत्ययुग से पूर्व संसार में एक महान् जलप्लावन आया, जिस में प्रायः समस्त भारत जलमग्न हो गया था । जलप्लावन में भारत के कुछ एक महर्षि ही जीवित रहे । यह वही महान् जलप्लावन है, जो भारतीय इतिहास में मनु के जलप्लावन के नाम से विख्यात है । इस भारी उथल-पुथल मचा देने वाली महत्त्वपूर्ण घटना का उल्लेख न केवल भारतीय वाङ् मय में है, अपितु संसार की सभी जातियों के प्राचीन ग्रन्थों में नूह अथवा नोह का जलप्लावन आदि विभिन्न नामों से स्मृत है । अतः इस महान् जलप्लावन की ऐतिहासिकता सर्वथा सत्य है । इस जलप्लावन का संसार के अन्य देशों पर क्या प्रभाव पड़ा, यह अभी अन्वेषणीय है । आधुनिक भाषा - विज्ञान भारतीय प्राचीन वाङ् मय के अनुसार संस्कृतभाषा विश्व की आदि भाषा है । परन्तु आधुनिक भाषाविज्ञानवादियों के मतानुसार संस्कृतभाषा विश्व की आदि भाषा नहीं है, और उसमें उत्तरोत्तर महान् परिवर्तन हुआ है । संवत् २००१ में मैंने पं० बेचरदास जीवराज दोशी की 'गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति' नामक पुस्तक पढ़ी। उसमें दोशी महोदय ने लगभग १०० पाणिनीय सूत्रों को उद्धृत करके वैदिक संस्कृत और
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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