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पाणिनीयाष्टक में अनुल्लिखित प्राचीन आचार्य
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संक्षिप्त प्रवचन है । मूल काशकृत्स्न-व्याकरण के अनुपलब्ध होने पर भी हमारा विचार है कि काशकृत्स्न का व्याकरण संक्षिप्त होते हए भी पाणिनीय अनुशासन की अपेक्षा विस्तृत था। इसमें निम्न हेतु
१. काशकृत्स्न-व्याकरण के आज हमें जितने सूत्र उपलब्ध हए ५ हैं, उनकी पाणिनीय सूत्रों के साथ तुलना करने से विदित होता है कि काशकृत्स्न-व्याकरण में अनेक ऐसे पदों का अन्वाख्यान था, जिनका पाणिनीय तन्त्र में निर्देश नहीं है । यथा
[क] ब्रह्म-बर्हेरेरो मनि (१।३२० पृष्ठ ५०) [ख] कश्यप, कशिपु-कशेर्यप इपुश्च (१।३७०, पृष्ठ ५९) [ग] पुलस्त्य, अगस्ति-पुल्यगिभ्यामस्त्योऽस्तिश्च
(१।४१०, पृष्ठ ६६) [1] लक्ष्मी, लक्ष्म, लक्ष्मण ~लक्षेर्मोमन्मनाः
(१०, पृष्ठ १८८) २. चन्नवीरकवि-कृत कन्नड-टीका-सहित जो धातुपाठ प्रकाशित १५ हुआ है, उसमें पाणिनीय धातुपाठ से लगभग ४५० धातुएं अधिक
जिस व्याकरण में धातुओं की संख्या जितनी ही अधिक होगी, निश्चय ही वह व्याकरण भी उतना ही अधिक विस्तृत होगा।
वैशिष्ट्य-किस व्याकरण में क्या वैशिष्टय है, इसका ज्ञान २० विभिन्न व्याकरण ग्रन्थों में उल्लिखित निम्नाङ्कित उदाहरणों से होता है। यथा१. प्रापिशलं पुष्करणम् । काशिका, ४१३।११५ ।।
प्रापिशलमान्तःकरणम् । सरस्वतीकण्ठाभरण, हृदयहारिणीटीका ४।३।२४५॥
१. हम ने काशकृत्स्न के उपलब्ध सूत्रों को व्याख्या सहित 'काशकृत्स्नव्याकरणम्' के नाम से प्रकाशित किया है।
२. वस्तुतः काशकृत्स्न-धानुपाठ में लगभग ८०० धातुएं ऐसी हैं । जो पाणिनीय धातुपाठ में नहीं हैं । ३५० धातुएं पाणिनीय धातुपाठ में ऐसी हैं, जो काशकृत्स्न-धातुपाठ में नहीं हैं । अतः दोनों ग्रन्थों की पूर्ण धातुसंख्या की दृष्टि ३० से काशकृत्स्न-धातुपाठ में ४५० धातुएं अधिक हैं । काश० व्याक० पृष्ठ २० ।
३. इन उदाहरणों का अभिप्राय अस्पष्ट है । वामन ने काशिका वृत्ति
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