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________________ १२८ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास पाणिनीय तन्त्रवत् पाठ ही अध्याय रखे थे।' पाणिनि तथा चान्द्र व्याकरणों के अनुसr भाज ने भी अपने सरस्वतीकण्ठाभरण नामक व्याकरण को आठ अध्यायों में ही विभक्त किया है। इतना ही नहीं, स्वयं पाणिनि ने भी व्याकरण और शिक्षा-सूत्रों को अपने उपजीव्य आपिशल-व्याकरण और शिक्षा-सूत्रों के अनुसार क्रमशः पाठ अध्यायों तथा आठ प्रकरणों में ही विभक्त किया है। इसी प्रकार कातन्त्र के व्याकरण प्रवक्ता ने भी तीन अध्यायों का विभागीकरण अपने उपजीव्य काशकृत्स्न-तन्त्र के अनुरूप ही किया हो, यह अधिक सम्भव है। हमारे इस अनुमान की पुष्टि इससे भी होती है कि कातन्त्र-धातु१० पाठ में काशकृत्स्न-धातुपाठ के समान ही धातुनों को नव गणों में विभक्त किया (जुहोत्यादि को अदादि के अन्तर्गत माना है) । प्रति अध्याय पाद-संख्या-काशकृत्स्न-व्याकरण के प्रत्येक अध्याय में कितने पाद थे, यह ज्ञात नहीं। काशकृत्न से लघु पाणिनीय-तन्त्र में आठ अध्याय हैं और प्रति अध्याय चार-चार पाद । ऐसी अवस्था १५ में काशकत्स्न-व्याकरण के तोन अध्यायों में प्रति अध्याय पाद-संख्या चार से अवश्य ही अधिक रही होगी। कातन्त्र के तोन अध्यायों में क्रमशः पांच-पांच तथा दश पाद है। काशकृत्स्न-तन्त्र पाणिनीय तन्त्र से विस्तृत-हम पहले लिख चुके हैं कि काशकृत्स्न का शब्दानुशासन किसी प्राचीन महातन्त्र का २० १. उपलब्ध चान्द्र व्याकरण में केवल छह ही अध्याय हैं, परन्तु मूल ग्रन्थ में आठ अध्याय थे। बौद्धमतानुयायियों की उपेक्षा के कारण अन्त के स्वरवैदिक-प्रक्रिया-सम्बन्धी दो अध्याय लुप्त हो गये । हमने इन लुप्त दो अध्यायों के अनेक सूत्र उपलब्ध कर लिये हैं । द्रष्टव्य इसी ग्रन्थ का 'पाणिनि से अर्वा चीन वैयाकरण' अध्याय में चान्द्र व्याकरण का प्रकरण । २५ २. हरदत्त के लेखानुसार (पदमञ्जरी, भाग १, पृष्ठ ६-७) पाणिनीय व्याकरण का उपजीव्य प्रापिशल-व्याकरण है । अष्टका आपिशलपाणिनीयाः । अमोघावृत्ति एवं चिन्तामणिवृत्ति ३।२।१६१ शाक० व्याक० । प्रापिशल और पाणिनीय-शिक्षा के लिए द्र०-हमारे द्वारा सम्मादित 'शिक्षासूत्राणि' (आपि शलपाणिनीयचान्द्र-शिक्षासूत्र) ग्रन्थ। इन शिक्षासूत्रों का नया संस्करण वि० ३० सं० २०२४ में प्रकाशित किया है । इस में पाणिनीय शिक्षासूत्रों के लघु और बृहत् दोनों पाठ दिये हैं।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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