________________
पाणिनीयाष्टक में अनुल्लिखित प्राचीन प्राचार्य
१२७
अतिबृहत् शास्त्र का संक्षेप से उपदेश किया । इसलिए शब्दकलाप का हमारे द्वारा उपरि विवृत अर्थ ही ठीक प्रतीत होता है।
काशकृत्स्न-धातुपाठ के सम्पादक श्री ए. एन्नरसिंहिया ने उक्त ग्रन्थ की भूमिका में 'शब्दकलाप' नाम के विषय में अपना कुछ भी विचार प्रकट नहीं किया। केवल 'काशकत्स्न शब्दकलाप-धातु- ५ पाठ नाम के कारण कुछ लोगों का कहना है कि इसका सम्बन्ध कलाप-व्याकरण से है। कलाप-व्याकरण के कुमार-व्याकरण और कातन्त्र-व्याकरण नामान्तर हैं' इतना ही लिखकर इस प्रश्न को टाल दिया है।
परिमाण-काशकृत्स्न-व्याकरण में कितने अध्याय, पाद तथा १० सूत्र थे, इसका निर्देशक कोई साक्षात् वचन उपलब्ध नहीं होता, परन्तु काशिका और अमोघावृत्ति में उद्धत त्रिकं काशकृत्स्नम, त्रिकं काशकृत्स्नीयम्', उदाहरणों से इतना स्पष्ट है कि काशकृत्स्न के किसी सूत्रात्मक ग्रन्थ में तीन अध्याय थे। हमारे विचार में उक्त उदाहरणों में स्मृत अध्यायत्रयात्मक काशकृत्स्न ग्रन्थ व्याकरण- १५ विषयक था, इसमें निम्न हेतु हैं
१. काशिका, ५।११५८ तथा जैन शाकटायन, ३।२।१६१ की अमोघा वत्ति में पूर्वोद्धत उदाहरणों के साथ निर्दिष्ट अष्टकं पाणिनीयम् आदि उदाहरणों में जितने अन्य सूत्र-ग्रन्थ स्मरण किये गये हैं, वे सब निश्चय ही व्याकरणविषयक हैं । इसलिए साहचर्य-नियम २० से उसके साथ स्मत काशकत्स्न का अध्यायत्रयात्मक ग्रन्थ भी व्याकरणविषयक ही होना चाहिए। .
२. कलापक अपरनाम कातन्त्र-व्याकरण काशकृत्स्न-व्याकरण का संक्षेप है, यह हम आगे सप्रमाण लिखेंगे । मूल कातन्त्र-व्याकरण में तीन ही अध्याय हैं। अत: यह सम्भव है कि कातन्त्र-व्याकरण के २५ उपजीव्य काशकृत्स्न-व्याकरण में भी तीन ही अध्याय रहे हों।
पाणिनि-व्याकरण के संक्षेपक चन्द्रगोमी ने अपने व्याकरण में
१. द्र०—पूर्व पृष्ठ ११६, टि० ७ ।
२. मूल कातन्त्र पाख्यातान्त है । अगला-कृदन्त-भाग (अध्याय ४) कात्यापन द्वारा परिवद्धित है । इस की मीमांसा कातन्त्र के प्रकरण में देखिए ।
३०