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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
अर्थ में जो 'क' प्रत्यय (अष्टा० ५।३।८६) हुमा है, उससे प्रतीत होता है कि कातन्त्र-व्याकरण जिस तन्त्र का संक्षिप्त संस्करण है, उसका मूल नाम 'कलाप' है। हम आगे सप्रमाण सिद्ध करेंगे कि
वर्तमान कातन्त्र, अपरनाम कलापक अथवा कौमार-व्याकरण काश५ कृत्स्न के महातन्त्र का ही संक्षेप है। अतः काशकृत्स्न के शब्दानुशासन का मूल नाम 'कलाप' ही प्रतीत होता है ।
शब्दकलाप का अर्थ-हम बहुत विचार के अनन्तर इस परिणाम पर पहुंचे हैं कि शब्दकलाप पद का अर्थ 'शब्दों की कलानों=
अंशों का पान करनेवाला' अर्थात् किसी बृहत् शब्दानुशासन का १० संक्षिप्त संस्करण है । इसमें निम्न कारण हैं
काशिका ४।३।११५, जंन शाकटायन ३।१।१८२ की चिन्तामणिवृत्ति तथा सरस्वती-कण्ठाभरण ४।३।२४५ की हृदयहारिणी टोका में एक उदाहरण है-काशकृत्स्नं गुरुलाघवम् । यह उदाहरण जिस सूत्र
का है, उसके अनुसार इसका अर्थ है-काशकृत्स्न ने किसी के उपदेश १५ के विना अपनी प्रतिभा से अपने शास्त्र में शब्दों के गौरवलाघव का
विचार करके अनन्त शब्दराशि में से लोकप्रसिद्ध मुख्य शब्दों का हा उपदेश किया और अप्रसिद्ध शब्दों को छोड़ दिया । अर्थात् काशकत्स्न ने शब्द-शास्त्र के संक्षेप करने में शब्दों के गौरव प्रसिद्धि
और लाघव =अप्रसिद्धि पर अधिक ध्यान दिया। अतः उक्त उदा२० हरण से स्पष्ट है कि काशकृत्स्न ने किसी पूर्व व्याकरण-शास्त्र में
अप्रसिद्ध शब्दविषयक सूत्रों को कम कर दिया, अर्थात् किसो पूर्व
१. दशपादी-उणादि-वृत्तिकार ने ३।५ (पृष्ठ १३०) पर कलापक शब्द में 'कला' उपपद होने पर प्राड्'-पूर्वक 'पा पाने' धातु से 'क्वन्' प्रत्यय माना
है । आचार्य हेमचन्द्र ने भी अपने धातुपारायण (पृष्ठ ६) तथा उणादिवृत्ति " (पृष्ठ १०) में दशपादी-वृत्तिकार का ही अनुसरण किया है । ऊपर के विवेचन से स्पष्ट है कि दोनों लेखकों की व्युत्पत्तियां अशुद्ध हैं ।
२. कातन्त्र शब्द का अर्थ भी ईषत्-तन्त्र ही है। ३. कातन्त्र की रचना छोटे बालकों के लिए हुई, यह इस नाम से स्पष्ट है।
४. हमारे विचार में गायकवाड़-संस्कृत-सीस्जि में प्रकाशित बालिद्वीपीय २. ग्रन्थसंग्रह के अन्तर्गत कारक-संग्रह के अन्तिम श्लोक 'कातन्त्रं च महातन्त्रं दृष्ट्वा
तेन उवाच' में स्मृत महातन्त्र कातन्त्र का उपजीव्य काशकृत्स्न-तन्त्र ही है ।