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________________ पाणिनीयाष्टक में अनुल्लिखित प्राचीन प्राचार्य १२५ पाश्चात्य ऐतिहासिक पाणिनि को विक्रम से ४००-६०० वर्ष पूर्व मानते हैं । यह मत भारतीय अनवच्छिन्न ऐतिहासिक परम्परा के अनुसार नितान्त मिथ्या है । पाणिनि विक्रम से निश्चय ही २६०० वर्ष प्राचीन हैं, यह हम इस ग्रन्थ में पाणिनि के प्रकरण में सप्रमाण लिखेंगे । तदनुसार, काशकृत्स्न का काल भारत-युद्ध (३१०० ५ वि० पूर्व) के समीप अथवा उससे पूर्व मानना होगा। . ___ काशकृत्स्न को पाणिनि से पूर्ववर्ती मानने में एक प्रमाण बाधक हो सकता है । वह है काशिका ६२।३६ का पाठ-प्रापिशलपाणिनीयाः, पाणिनीयरौढीयाः, रौढीयकाशकृत्स्नाः । इनमें आपिशलि निश्चय ही पाणिनि से पूर्ववर्ती है। यदि अगले उदाहरणों में भी इसी १० प्रकार पौर्वापर्य-व्यवस्था मानी जाय, तो पाणिनि से अर्वाचीन रौढि और उससे अर्वाचीन काशकृत्स्न को मानना होगा। परन्तु यह कल्पना पूर्व उद्धृत प्रमाणों से विरुद्ध होने के कारण चिन्य है। इतना ही नहीं, वर्धमान के मतानुसार पाणिनीयरौढीयाः गढीयपाणिनीयाः दोनों प्रकार के प्रयोग होते हैं (गणरत्नमहोदधि, पृष्ठ २६) १५ अतः स्पष्ट है कि काशिका के उपर्युक्त उदाहरणों में काल-क्रम अभिप्रेत नहीं है। अन्य परिचय नाम-अभी कुछ वर्ष हुए. काशकृत्न का कन्नड-टीका-सहित जो धातुपाठ प्रकाशित हुआ है, उसका नाम है-काशकृत्स्न शब्दकलाप २० धातुपाठ । इस नाम में 'शब्दकलाप' पद धातुपाठ का विशेषण है, अथवा काशकृत्स्न के शब्दानुशासन का मूल नाम है, यह विचारणीय है । शब्दानां प्रकृत्यात्मिकां कलां पाति रक्षति (= शब्दों की प्रकृति रूप कला=अंश की रक्षा करता है) व्युत्पत्ति के अनुसार यह धातुपाठ का विशेषण हो सकता है। परन्तु हमारा निचार है कि शब्द- २५ कलाप काशकत्स्न-शब्दानुशासन का प्रधान नाम था। इसमें निम्न हेतु है, कातन्त्र, अपरनाम कलापक-व्याकरण' के कलापक नाम में ह्रस्व - - १. सम्प्रति इसका 'कलाप' नाम से भी व्यवहार होता है। यह व्यवहार चिन्त्य है ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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