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________________ १२४ संस्कृतव्याकरण-शास्त्र का इतिहास __ अर्थात् - प्रापिशल और काशकृत्स्न व्याकरण में पाणिनि द्वारा पठित 'तदहम्' (५।१।११७) सूत्र नहीं था। प्रतीत होता है, आपिशल और काशकृत्स्न व्याकरण में तदहम् सूत्र के न होने के कारण ही महाभाष्यकार पतञ्जलि ने पाणिनि के इस सूत्र की आवश्यकता का प्रतिपादन बड़े यत्न से किया है । यदि काशकृत्स्न पाणिनि से उत्तरवर्ती होता, तो निश्चय ही वह पाणिनि का अनुकरण करता, न कि प्रापिशलि के समान उसका त्याग करता। १०. कातन्त्र-व्याकरण में एक सूत्र है-भिस ऐस् वा (२।१।१८)। अर्थात् अकारान्त शब्दों से परे तृतीया विभक्ति के बहुवचन 'भिस्' के स्थान में 'ऐस्' विकल्प करके होता है। यथा, देवेभिः, देवः । कातन्त्र काशकृत्स्न-तन्त्र का संक्षेप है, यह आगे सप्रमाण लिखा जायगा। तदनुसार कातन्त्रकार ने यह सत्र अथवा मत काशकृत्स्न से लिया होगा। पाणिनि के अनुसार लोक में केवल ऐस के देवः आदि प्रयोग होते हैं । कातन्त्र विशुद्ध लौकिक शब्दों का व्याकरण हैं अतः १५ उसका उपजीव्य काशकृत्स्न व्याकरण उस काल की रचना होना चाहिए, जब भाषा में भिस् और ऐस दोनों के देवेभिः, देवैः दोनों रूप प्रयुक्त रहे हों। वह काल पाणिनि से निश्चय ही पर्याप्त प्राचीन रहा होगा। ११. पाणिनीय धातुपाठ के जुहोत्यादि गण के तथा स्वादि गण २० के अन्त में छन्दसि गणसूत्र का निर्देश करके जो धातुएं पढ़ी हैं, प्रायः वे सभी धातुएं काशकृत्स्न-धातुपाठ में छन्दसि निर्देश के विना ही पढ़ी गई हैं। इससे प्रतीत होता है कि काशकृत्स्न पाणिनि से बहुत प्राचीन है। पाणिनि के समय वैदिक मानी जानेवाली धातुएं काशकृत्स्न के काल में लोक में भी प्रचलित थीं। अन्यथा, वह भी पाणिनि के समान २५ इनके लिए छन्दसि का निर्देश अवश्य करता। इन उपर्युक्त प्रमाणों और हेतुओं से स्पष्ट है कि काशकृत्स्न पाणिनि से निश्चय ही पूर्ववर्ती हैं। इतना ही नहीं, हमारे विचार में तो काशकृत्स्न प्रापिशलि से भी प्राचीन है। १. टीकाकारों ने इस सूत्र के अर्थ में वड़ी खींचातानी की है। ३० २. शर्ववर्मणस्तु वचनाद् भाषायामप्यवसीयते । नह्ययं (कातन्त्रकारः) छान्दसान शब्दान् व्युत्पादयति । कातन्त्रवृत्ति, परिशिष्ट पृष्ठ ५३० ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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