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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ।
२. वेदान्तसूत्र निश्चय ही पाणिनि से प्राचीन हैं । अतः उनमें स्मृत आचार्य कृष्ण द्वैपायन का समकालिक होगा, अथवा उससे पूर्ववर्ती।
३. तत्त्वरत्नाकर के रचयिता भट्ट पराशर ने काशकृत्स्न को ५ बादरायण अर्थात् कृष्ण द्वैपायन का शिष्य माना है।'
४. महाभाष्य पस्पशाह्निक के अन्त में क्रमशः पाणिनि आपिशलि और काशकृत्स्नप्रोक्त ग्रन्थों का उल्लेख है-पाणिनि प्रोक्त पाणिनीयम्, प्रापिशलम, काशकृत्स्नम् ।
इनमें आपिशलि निश्चय ही पाणिनि से पूर्ववर्ती है। अत एव १० उसका पाणिनि के अनन्तर निर्देश किया है । इसी क्रमानुसार काश
कृत्स्न न केवल पाणिनि से पूर्ववर्ती होगा, अपितु वह आपिशलि से भी पूर्ववर्ती होगा।
५. पांच छ: वर्ष' हुए काशकृत्स्न का धातुपाठ कन्नड-टीकासहित प्रकाशित हुआ है। उसमें पाणिनि के धातुपाठ की अपेक्षा १५ लगभग ४५० धातुएं अधिक हैं। भारतीय ग्रन्थ-प्रवचन-परिपाटी के
अनुसार शास्त्रीय ग्रन्थों का उत्तरोत्तर संक्षेपीकरण हुआ है। व्याकरण के उपलब्ध ग्रन्थों के अवलोकन से भी इस बात की सत्यता भली भांति समझी जा सकती है । इससे मानना होगा कि काशकृत्स्न-धातु
पाठ पाणिनीय धातुपाठ से प्राचीन है। २०६. काशकृत्स्न-धातुपाठ में अनेक धातुओं के दो-दो रूप हैं। यथा
ईड ईल स्तुतौ । पाणिनि ने इनमें इड रूप पढ़ा है । अत एव उत्तरवर्ती वैयाकरण इडा और इला शब्दों की सिद्धि एक ही ईड धातु से करते हुए ड-ल वर्णों का अभेद मानते हैं ।
७. काशकृत्स्न-धातुपाठ में अनेक ऐसी धातएं हैं, जो उसयपदी २५ हैं। उनके परस्मैपद और आत्मेनपद दोनों प्रक्रियाओं में रूप होते हैं,
ग्रन्थों में 'कशकृत्स्न' ही पाठ था। अतः काशिका में सम्प्रति उपलभ्यमान 'काशकृत्स्न' प्रमादपाठ है।
१. पूर्व पृष्ठ १२०, टि० २१ २. इस ग्रन्थ के सं० २०२० के द्वितीय संस्करण के समय ।
३. इसका हमने संस्कृत-रूपान्तर 'काशकृत्स्न-धातु व्याख्यानम्' के नाम से ३० प्रकाशित किया है।