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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
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प्रथम आह्निक के अन्त में प्रापिशल और पाणिनीय शब्दानुशासनों के साथ काशकृत्स्न शब्दानुशासन का उल्लेख मिलता है ।' वोपदेव ने प्रसिद्ध आठ शाब्दिकों में काशकृत्स्न का उल्लेख किया है । क्षीरस्वामी ने काशकृत्स्नीय मत का निर्देश किया है। काशकृत्स्न व्याकरण के अनेक सूत्र प्राचीन वैयाकरण वाङमय में उपलब्ध होते हैं । अब तो काशकृत्स्न का धातुपाठ भो कन्नड टीकासहित प्रकाश में आ गया है। कन्नड टीका में काशकृत्स्न व्याकरण के लगभग १३५ सूत्र भी उपलब्ध हो गए हैं ।
परिचय १० पर्याय-काशिका ५ । १।५८ में एक उदाहरण है-त्रिकं काश
कृत्स्नम् । जैन शाकटायन की अमोघा वृत्ति ३ । २ । १६१ में इस का पाठ है–त्रिकं काशकृत्स्नीयम् । इन दोनों उदाहरणों की तुलना से इतना स्पष्ट है कि उक्त दोनों उदाहरणों में निश्चयपूर्वक किसी एक
ही ग्रन्थ का संकेत है । परन्तु काशकृत्स्न और काशकृत्स्नीय पदों में १५ श्रयमाण तद्धित-प्रत्यय से विदित होता है कि एक काशकृत्स्नि-प्रोक्त
है, और दूसरा काशकृत्स्न-प्रोक्त । न्यासकार जिनेन्द्रबुद्धि काशिका के ४।३।१०१ के उदाहरण की व्याख्या में लिखता है-प्रापिशलं काशकृत्स्नमिति-प्रापिशलिकाशकृत्स्निशब्दाभ्याम् इनश्च (४।२।११२)
१. पाणिनिना प्रोक्त पाणिनीयम, आपिशलम्, काशकृत्स्नम् इति । २. द्र० पूर्व पृष्ठ ६६ ।
३. काशकृत्स्ना अस्य निष्ठायामनिटत्वमाहुः-आश्वस्तः, विश्वस्तः । क्षीरतरङ्गिणी, पृष्ठ १८५।
४. कैयट-विरचित महाभाष्य प्रदीप २।१।५०; ५१॥२२॥ भर्तृहरिकृत वाक्यपदीय स्वोपज्ञ टीका, काण्ड १, पृष्ठ ४०, उस पर वृषभदेव की टीका पृष्ठ ४१ ।
५. इस काशकृत्स्न धातुपाठ की कन्नड टीका का रूपान्तर 'काशकृत्स्नधातुव्याख्यानम्' के नाम से हमने प्रकाशित किया है।
६. काशकृत्स्न व्याकरण के विस्तृत परिचय और उसके उपलब्ध समस्त सूत्रों की व्याख्या के लिये देखिए हमारा 'काशकृत्स्न-व्याकरणम्' ग्रन्थ ।
७. मुद्रित अमोघावृत्ति में यह पाठ नहीं है। अमोधावृत्ति २।४।१८२ में ३० 'त्रिकाः काशकृत्स्ना:' पाठ मिलता है।