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________________ पाणिनीयाष्टक में अनुल्लिखित प्राचीन प्राचार्य ११५ २।२।१८' तथा कातन्त्र दुर्गवत्ति २२५१५ में भी मिलता है। यह चारायण शाखा-प्रवक्ता चारायण से भिन्न और अर्वाचीन है। काल चारायण कृष्ण यजुर्वेद की चारायणीय शाखा का प्रवक्ता है।' यह शाखा इस समय अप्राप्य है, परन्तु इसका 'चारायणीय मन्त्रार्षा ५ ध्याय' सम्प्रति मिलता है । यह दयानन्द एंग्लो वैदिक कालेज लाहौर से प्रकाशित हआ है। वैदिक शाखाओं का अन्तिम प्रवचन भारतयुद्ध के समीप हुआ था। अतः इसका समय विक्रम से लगभग ३१०० वर्ष पूर्व है। अन्य ग्रन्थ चारायणीय संहिता-यह कृष्ण यजुर्वेद की शाखा थी। इसका विशेष वर्णन पं० भगवद्दत्त कृत 'वैदिक वाङ्मय का इतिहास भाग १ पृष्ठ २९४,२९५ (द्वि० सं०) पर देखो। चारायणी शिक्षा-यह शिक्षा कश्मीर से प्राप्त हुई थी। इसका उल्लेख इण्डियन एण्टीक्वेरी जुलाई १८७६ में डाक्टर कीलहान ने १५ किया है। साहित्यिक ग्रन्थ-नाटकलक्षणरत्नकोश के रचयिता सागरनन्दी ने चारायण के किसी साहित्यसंबंधी ग्रन्थ से एक उद्धरण उदधत किया है। -काशकृत्स्न (३१०० वि० पू०) यद्यपि पाणिनीय शब्दानुशासन में प्राचार्य काशकृत्स्न का वैयाकरण के रूप में उल्लेख नहीं मिलता, पुनरपि वैयाकरण निकाय में काशकृत्स्न का व्याकरण-प्रवक्तृत्व अत्यन्त प्रसिद्ध है । महाभाष्य के १. दीर्घश्चारायणः । २. इस शाखा का वर्णन देखो श्री पं भगवद्दत्त जी कृत 'वैदिक वाङ्मय २५ का इतिहास' प्रथम भाग,पृष्ठ २६४ (द्वि० सं०)। ३. प्राह चारायण:-'प्रकरणनाटकयोविष्कम्भः' इति । नाटकलक्षणरत्न कोश, पृष्ठ १६ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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