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________________ ११४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास प्रत इन से इन होकर चारायणि भी उसी व्यक्ति के लिये प्रयुक्त होता है। इस की मीमांसा आगे काशकृत्स्न-प्रकरण में विस्तार से करेंगे। अन्यत्र उल्लेख महाभाष्य १।१।७३ में उदाहरण दिये हैं-कम्बलचारायणीयाः, पोदनपाणिनीयाः घृतरौढीयाः । वामन ने काशिकावृत्ति ६।२।६६ तथा यक्षवर्मा ने शाकटायन वृत्ति २।४।२ में 'कम्बलचारायणीयाः' उदाहरण दिया है। कैयट की भूल-कयट ने महाभाष्य १११७३ के उदाहरण की १० व्याख्या करते हुए लिखा है-'कम्बलप्रियस्य चारायणस्य शिष्या इत्यर्थः। यह व्याख्या अशुद्ध है। इस का अर्थ 'कम्बलप्रधानश्चारायणः कम्बलचारायणः, तस्य छात्राः' करना चाहिये । अर्थात् प्राचार्य चारायण के पास कम्बलों का बाहुल्य था, वह अपने प्रत्येक छात्र को १५ कम्बल प्रदान करता था। वामन काशिका ६।२।६६ में पूर्वपदान्तो दात्त 'कम्बलचारायणीयाः' उदाहरण क्षेप अर्थ में उद्धृत करता है। उसका अभिप्राय भी यही है कि जो छात्र चारायण-प्रोक्त ग्रन्थ को पढ़ते हैं, वे पूर्वपदान्तोदात्त-विशिष्ट 'कम्बलचारायणीयाः' पद से व्यवहृत होते हैं। किसी चारायण का मत वात्स्यायन कामसूत्र में तीन स्थानों पर उद्धृत है।' चारायण का एक मत कौटिल्य अर्थशास्त्र में दिया हैतृणमतिदीर्घमिति चारायणः। ___ शाम शास्त्री सम्पादित मूल अर्थशास्त्र तृतीय संस्करण में 'नारायणः' पाठ है। अर्थशास्त्र के प्राचीन टीकाकार के मत में यह दीर्घचारायण मगध के बाल (बालक-प्रद्योत) नामक राजा का प्राचार्य था। अर्थशास्त्र संकेतित कथा का निर्देश नन्दिसूत्र आदि जैन ग्रन्थों में भी मिलता है । देखो शाम शास्त्री सम्पादित मूल अर्थशास्त्र की भूमिका पृष्ठ २० । दीर्घचारायण का निर्देश चान्द्रवृत्ति १. द्रष्टव्य पूर्व पृष्ठ ११३ की टि० २। ३० २. १।१।१२॥ १।४।१४॥ १॥५॥२२॥ ३. अधि० ५।०५।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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