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पाणिनीयाष्टक में अनुल्लिखित प्राचीन प्राचार्य ११३
प्राचार्य पाणिनि से पूर्ववर्ती है यह निर्विवाद है ।
पौष्करसादि - शाखा - तैत्तिरीय प्रातिशाख्य ५/४० के माहिषेय भाष्य के अनुसार पौष्करसादि ने कृष्ण यजुर्वेद की एक शाखा का प्रवचन किया था ।' शांखायन श्रारण्यक के उद्धरण से भी यही प्रभासित होता है । शाखा प्रवक्ता ऋषि प्रायः कृष्णद्वैपायन के ५ समकालीन थे । अतः पौष्करसादि का काल भारतयुद्ध के आसपास ३१०० वि० पूर्व है ।
८ - चारायण ( ३१०० वि० पू० )
आचार्य चारायण ने किसी व्याकरणशास्त्र का प्रवचन किया था, इस का स्पष्ट निर्देशक कोई वचन उपलब्ध नहीं हुआ । लौगाक्ष - गृह्य १० के व्याख्याता देवपाल ने कं० ५, सू० १ की टीका में चारायण अपरनाम' चारायणि का एक सूत्र और उसकी व्याख्या उद्धृत की है । वह इस प्रकार है
तथा च चारायणिसूत्रम् - पुरुकृतेच्छछ्रयो:' इति । पुरु शब्दः कृतशब्दश्च लुप्यते यथासंख्यं छे छूटे परतः । पुरुच्छदनं पुच्छम् कृतस्य १५ छुवनं विनाशनं कृच्छ्रम्' इति ।
यदि यह सूत्र चारायणीय प्रातिशाख्य का न हो, जिस की अधिक संभावना है, तो निश्चय ही उसके व्याकरण का होगा । महाभाष्य १|१|७३ में चारायण को वैयाकरण पाणिनि और रौढि के साथ स्मरण किया है । ग्रतः चारायण अवश्य व्याकरणप्रवक्ता रहा होगा । २०
परिचय
वंश - चारायण पद अपत्यप्रत्ययान्त है, तदनुसार इस के पिता का नाम 'चर' है । पाणिनि ने नडादिगण में इसका साक्षात् निर्देश किया है। उससे 'फक' होकर चारायण पद निष्पन्न होता है । उससे
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१. शैत्यायनादीनां कोहलीपुत्र - भारद्वाज स्थविर - कौण्डिन्य- पौष्करसादीनां २५ शाखिनाम् ..... ।
२. तुलना करो - पाणिन और पाणिनि शब्द के साथ ।
३. कम्बलचारायणीयाः, श्रोदनपाणिनीयाः, धृतरौढीयाः । ४. अष्टा० ४ १६६॥